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द्वितीयखम.
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प्रशव नामा सातमा गुण लिखते है. प्रशव ननको कहते है जो परको गंगे नदि इस वास्ते प्रशठ, श्रमायी, विश्वासका स्थान होता है, और जो शव, मायाशील होता है यद्यपि किंचितू पाप न करे सोजी सर्पकी तरें आत्मदोष करी दूषित बनके विश्वास योग्य नहि होता है. इस वास्ते अशठ प्रसंशनीय होता है.. - " यथा चितं तथा वाचो यथा वाचस्तथा क्रियाः, धन्यास्ते वितये येषां विसंवादो न विद्यते " ॥ १ ॥ अर्थ - जेसा चिन तैसा वचन और जैसा वचन ऐसी क्रिया. ए तिनमं जिसकु विसंवाद नदि है, सो पुरुष धन्य है.
ऐसा पुरुष धर्मानुष्ठानमें प्रवर्त्तता है. तथा जावसारसद्जावसुंदर अपने चित्तके रंजन करनेवाले अनुष्ठानका कर्ता है. परंतु परके चिचके रंजन करने वास्ते नदि करता है. क्योंकि स्व चित्तको रंजन करना बहुत कठिन है. तथा चोक्तं,
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नूयांसो नूरिलोकस्य चमत्कारकराः नराः । रंजयंति स्वचित्तं ये नूतले ते तु पंचपाः " ॥ १ ॥ तथा, कृर्तिमैर्डवरैश्वित्तं शक्यतोषयितुं परं । श्रात्मातुवास्तवैरेव दंत कं परितुष्यति ॥ २ ॥ अर्थ - दुसरा बोहोत लोकोकुं चमत्कार करनेवाला बहोत पुरुषो है. परंतु जे पुरुष पोताना मनकुं रंजन करे ऐसा पृथ्वी में पांच व पुरुष होता है. कत्रिम श्राडंबरो घुसरेकुं संतोष करना शक्य है. परंतु आत्माकुं कोण संतोष कर सक्ता है. इस वास्ते अशी धर्मके योग्य होता है. सार्थवादपुत्र चक्रदेववत् इति सप्तमो गुणः.
सुदाक्षिण्य नामा आठमा गुण लिखते है. सुदाक्षिण्य पुरुप परोपकार में प्रवर्ते, जब कोई प्रार्थना करे तब तिसको दि तकारी काम करे. जावार्थ यह है कि जो काम इस लोकमें और
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