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द्वितीयखम. सो सप्रमाण नही है. जेकर कहै, सर्व वस्तु परंपरासें मनुष्यके नौगमें आती है, घासादि खानेसे ऽध तया मांसादि होते है, वे मनुष्यके नोगमें आता है. इस तरेतो सर्व वस्तु सिंह व्याघ्रादिकके लोग वास्ते ईश्वरने रची है यह नी सिद्ध होवेगा. तद्यथामनुष्यके वस्तुके नोगसे मांस रुधिरादिककी वृद्धि करता है, तिस मनुष्यके शरीरको माकम, जं, लीव व्याघ्र सिंहादि नदाण करते है. तबतो परंपरासें नोग्य होनेसे सर्व वस्तु परमेश्वरने माकड, जूं, लिंख, सिंह व्याघ्रादि जीवोंके लोग वास्ते रचे सिह होवंगे. धन्य है यह समजको ! सर्व वस्तु मनुष्यके लोग वास्ते तथा अन्य जीवोके लोग वास्ते. रची है ! ईश्वरने नहि रचे है, किंतु जैसे जैसे जीवोने पुण्य पापरूप कर्म करे है, तैसे तैसे अपने अपने निमित्तद्वारा सर्व जीवांको मिलते है. परंतु ईश्वर परमात्माने किसीके लोग वास्ते कोई वस्तु नदि रची है.
हे नोले मनुष्यो ! तुम क्यों ईश्वरको कलंक देके नरकगामी बनते हो क्योंकि जब ईश्वर आदिमें एकको राजा, एकको रंक, एक सुखी, एक दुःखी, एक जन्मसेंही अन्धा, लंगमा, लुला, बहिरा, रोगी, अंगहीन, निर्धन, नीच कुल में जन्म और जन्मसे मरण पर्यंत महा दुःखी रचे है और कितनेक पूर्वोक्तसें विपरीत रचे है. जेकर कहोगे, कर्मानुसार ईश्वर रचता है तबतो अनादि संसार अवश्य मानना पमेगा. जेकर कहोगे, ईश्वरकी जैसी इज्डा होती है तैसा रच देता है, तबतो ईश्वर अन्यायी, निर्दय, पक्षपाती; अज्ञानी, बखेमी, कुतूहली, असमंजसकारी, असुखी, नबरंगी, व्यर्थ कार्यकारी, बालक्रीडा करनेवाला, रोगी, वेषी इस्यादि अनेक दूषणोंसे युक्त होवेंगे. और वे दूषणो ईश्वरमें मूर्ख
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