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द्वितीयखम. सामर्थ्य अच्छे पुरुषको संकटमें पके सहाय न करणा; इत्यादि श्ह लोक विरु धर्मका अधिकारी वर्जे.
परलोक विरुद यह है; खर कर्मादिखेती करावणी, कोटवाल पणा, महसुलका ठेका लेना, गामका ठेका लैना, कोयला कराय वेचना, वन कटाय वेचना, इत्यादि महा हिंसक काम विरति नहि तोनी सुकृति न करे. ये काम यद्यपि इस लोकसे विरुद नहि तोनी परलोकमें अच्छी गतिके नाशक होनेसे परलोक वि. रु६ है.
उन्नय लोक विरूह यह है; जुआ खेलनादि, तद्यया." द्यूतं च मांसं च सुरा च वेश्या पापाई चौर्ये परदारसेवा । एतानि सप्तव्यसनानि लोके, पापाधिके पुंसि सदा नवन्ति " ॥१॥ इहैव निंद्यते शिष्टैर्व्यसनासक्तमानसः, मृतस्तु उगीतं याति, गतत्राणो नराधमः ॥२॥ अर्य-प्रथम, जुएका खेलना बमा पाप है. इस लोकमें जुवारीयेकी इज्जत नहि है. जुआ खेलनेसें दीवालीये हो जाते है, राजे राज्य हार जाते है, चोरी करते है, वेश्या और परस्त्रीगमन करते है, बालक बच्चेको मारके उसका झवेरात उतार लेते है, मांस खाते है, और मद्य पीते है, लुच्चे और बदमासोकी मंमलीमें रहते है, धर्म कर्मसें ब्रष्ट हो जाते है, मरके नरकादि गतिम नत्पन्न होते है, इस वास्ते जुएका खेलना नन्नय लोक विरुद्ध है. उसरा. मांसका खानान्नी उन्नय लोक विरुइ है, क्योंकि मांस खानेसें दया नष्ट हो जाती है. जो अच्छी पशु, पनी देख. नेमें आता है तिसनीको खानेकी इच्छा होता है, मांस खानेवालेका हृदय ऐसा कठोर हो जाता है कि मनुष्य मारणेमनी किरक नदि करता है. जितने मांसाहारी है वे सर्व निर्दय है जैसे नील, कोली, मैणा, धांगम, नंगी, ढेड, चमार, धाणक, गंधील, कंजर, वाघरी
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