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हितीयखम..
३०॥ रूपवान कहे जाते है. सामर्थ्य संहनन वाला तप संयमादि अनु. टान करमे में शक्तिमान होता है. पूर्वोक्त रूपवान धर्म करणेको समर्थ होता है, सुजातवत्. जेकर यथोक्त रूपवान् न होवे तो प्राये सत् गुणका नागी नदि होता है. यथा “ विषमसमैविषम समा, विषमैर्विषमाः समैः समाचाराः । करचरणदंतनासिका, वकत्रोष्टनिरीक्षणैः पुरुषाः ॥१॥ नावार्थ-जिस पुरुषके हाथ, पगदांत, नासिका, मुख, होग, आंख वांके टेढे दोवे वे पुरुष कपटी धूर्त, वक्राचारी होते है. और ये पूर्वोक्त हायादि सम-सूधे सुंदर होवे वे पुरुष सरलचारी और धर्म के योग्य होते है. यह बहुलताका कथन है, तथा आचारांगकी टीकामेंनी कहा है कि “यत्राकृतिस्तत्र गुणा वसन्ति”. अर्थात् जहां सुंदर रूप होवे तहां गु. ण वास करते है. यह गुण तो पूर्व जन्म के पुण्योदयसें होता है विवेक विलाप्समें श्री जिनदत्तसूरिनी लीखते है, जिसका हस्त रक्त होवे सो धनवंत होवे, और नीला हावे सो मद्यपीने वाला होवे, और पीला होवे सो परस्त्रीमामी होवे, और काला होवे सो निर्धन होवे, और जिसका नख श्वेत होवे सो यति दोवे, दाम सरीखे नख होवे सो निर्धन होवें, पीले नख होवे सो रोगी होवे फुल सरीखे नख होवे सो पुष्ट होवे, व्याघ्र सरीखे नख होवे सो क्रूर होवे. इस वास्ते रूपवान्ही धर्मका अधिकारी है. इति स्वरूपवान् द्वितीयो गुणः.
प्रकृति सौम्य नामा तिसरा गुण कहते है. प्रकृति अर्थात् स्वन्नावेही परंतु कृत्रिम नहि है सौम्य स्वन्नाव जिसका सो अमरामणी, विश्वसनीय, सुरति रूपवाला होवे, और पापकर्म, प्रा. क्रोशवध, हिंसा चोरी आदिमें न प्रवर्ते, एतावता निर्वाह होते हुए पापमें न प्रवर्ने, सुखे क्लेशके विना आराधने योग्य होवे और अन्य जीवांको प्रशमका कारण दोवे, विजय श्रेष्टिवत्. इस गुण
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