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अज्ञानतिमिरजास्कर.
१७–१८-१०-२० शेष गुणवालेको मध्यम योग्यतावाला जानना. तीन इक्कीस गुणमेंसें जिसमें दसगुणांसें न्यून गुण होवे वो जीव धर्मकी योग्यता रहित जानना. वे इक्कीस गुण ये दै.
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प्रकु १ रूपवान् २ प्रकृति सौम्य ३ लोकप्रिय ४ अक्रूर - चित्त ५ नीरु ६ अशठ ७ सुशकिएय लज्जालु ए दयालु १० मध्यस्थ सोमदृष्टि ११ गुणरागी १२ सत्कथ १३ सुपयुक्त १४ सुदीर्घदर्शी १५ विशेषज्ञ १६ वृद्धानुग १७ विनीत १८ कृतज्ञ १७ परहितार्थकारी २० लब्धलक्ष्य २१. इनका किंचित् मात्र खुलासा लिखते है.
अतु- यद्यपि कुइ शब्द तुच्छ, क्रूर, दरिड, लघु, प्रमुख अर्थो में वर्तते है तोनी इहां कुइको प्रगंजीर कहते है. तुच्छ बुदि, उत्तान मति, निपुण बुद्धि; ये इस गंभीरपणेका पर्याय नाम है. गंभीर पुरुष धर्म नहि प्राराध शकता है. जीमवत् क्योंकि धर्म जो हे सो सूक्ष्म बुद्धि साध्या जाता है, और तुच्छ बुद्धि धर्मका घात हो जाता है. इस वास्ते प्रकु पुरुष सूक्ष्मदर्शी, अच्छीतरे विचारके कामका करणेवाला इहां धर्म ग्रहण करणे योग्य होता है, सोमवत्. नीम सोमकी कथा - मरत्न शास्त्र से जाननी सर्व दृष्टांत तहांसे जानने इहां निःकेववल गुण और नाम मात्र लिखेंगे. इति प्रथमो गुणः दुसरे रूपवान् गुणका स्वरूप लिखते है.
संपूर्ण दोवे अंगोपांग - तदां अंग, शिर, नर, नदर प्रमुख है और उपांग अंगुलि आदिक है. ये पूर्वोक्त अंगोपांग जिसके संपूर्ण होवे और खंमित न होवे वो रूपवानू कदे जाता है. पांचो इंड़िय सुंदर होवे. काणां, शेकर, बहिरा, गुंगादि न होवे और शोजनीक संदनन अर्थात् शरीर सामर्थ्यवाला जिसका दोवे वो
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