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अज्ञानतिमिरनास्कर. हो गये है तिनकी प्रतिमा विना तिनके स्वरूपका कैसै ज्ञान हो सके ? इस वासते सत्यशास्त्रोंके नपदेशककी प्रतिमा माननी प्रोर पूजनी चाहिये. ओर तिनके स्वरूपका ध्यानन्नी तिस मूर्ति छाराही हो सकता है.
पूर्वपद-जेकर इश्वर सर्वज्ञ देहधारी को दूा होवे तो तो तुमारा कहना सत्य होवे, परंतु देहधारी सर्वज्ञ ईश्वर दूआही नही है.
नत्तरपद-यह कहना समीचीन नही है. क्योंकि वेद, वेदांत, न्याय, जैन आदि सर्व शास्त्र देहधारीकों सर्वज्ञ होना कहते है, और युक्ति. प्रमाणसे संमति, छादशसार नयचक्र, तत्वालोकालंकार सूत्रमें देहधारीकों सर्वज्ञ ईश्वर होना सिह करा है, इस वास्ते प्रतिमा मानना नचित है. जेकर देहधारी सर्वज्ञ नही मानता तो वेद किसने बनाये है. ?
नत्तर-सर्वव्यापक सर्वज्ञ ईश्वरनें...
प्रश्न-क्या ईश्वरने मुखसें वेद नच्चारे है ? नही तो क्या नासिकासें नच्चारे है ? नही तो क्या कर्णधारा नचारे है ?
नत्तर-नही क्योंकि मेरे ईश्वरके मुख, कर्ण नासिका है नही शरीरनी नही है.
प्रश्न-जब ईश्वरके पूर्वोक्त वस्तुयो नही है तो वेद कहांसें नत्पन्न हुआ है.
पूर्वपद-ईश्वरने अग्नि, वायु, सूर्य, अंगिरस नामक ऋषियोंके मुखधारा नच्चारण करवाये है.
उत्तरपद-यह कहना जूठ है,अप्रमाणिक होनेसें. क्योंकि जिसके मुख नाक कान शरीरादिक न होवेंगे वो दूसरायोंकों कैसे प्रेरणा कर सक्ता है ? जेकर कहोके ईश्वरनें अपने मनसे
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