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अज्ञान तिमिरजास्कर.
देवजीने इस अवसर्पिणी में प्रथम जैनमत प्रवृत्त करा और अंतके तीर्थंकर श्री महावीर हुये. श्रीमदावीरके गौतमादि १४००० चौदे दजार शिष्य हुये.
श्रीमहावीर जगवंतका उपदेश सुनकें गौतमादि ११ इग्यारें जैन ग्रंथोका raiने द्वादशांग शास्त्र रचे, तिनमें प्रथम श्री - इतिहास. आचारांग रचा, तिसके पचीस अध्ययन है तिनमेंसे प्रथम श्रुतस्कंध के नव अध्ययनोमें जीवास्तित्व १ कपायजीतना २ धनुकूल प्रतिकूलपरिसद सदना ३ सम्यकत्वका स्वरूप ४ लोकमें सार वस्तुका कथन ए पूर्वोपार्जित कर्म कय करणा ६ विशेष करके जगतके फंदसें बूटना ७ महात्याग और मदाज्ञानका कथन श्रीमहावीर अईतकी बझस्यचर्या ए इन नवांका विचित्र तसे कथन है; और दुसरें श्रुतस्क में साधुके याचार व्यवहारादिका कथन है. इस सूत्र के अठार हजार १८००० पद है. और चौदह पूर्वधार नश्वादुस्वामिकी करी इस नपरें निर्युकि है, पूर्वधारी की करी चूर्णी है, शीलांगाचार्यकी करी टीका है. दुसरा शास्त्र सूत्रकृतांग, इसमें तीनसें त्रेसठ मतांका खंमन और जैनमतका मंमन है. इसी तरें द्वादशांगका स्वरूप जान लेना. द्वादशांगोके विना श्री महावीरके शिष्योंके रचे १४००० चौदह हजार शास्त्र प्रकीर्णनी है अरू बारवां अंग दृष्टिवाद थे, जीसके एक अध्ययन में चौदह पूर्व थे. चौदह पूर्वका इतना मूलपाठ था कि जेकर श्याहीसे लिखता सोने हजार तीनसें तीरासी १६३०३ हाथी प्रमाण श्यादीका ढेर लिखनेको लगे. येपूर्व लिखे कदापि नदि जाते है, गौतमादि गणधरोके केंवस्थही थे. जब ये पूर्व व्यवच्छेद होने लगे तब प्राचार्योनं तिनका स्थलोंके लाखो ग्रंथ रचे तिनमें उमास्वाति आचार्य श्री
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