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ब्रह्मजिज्ञासा ॥ इत्यादि ॥
फेरतो भी लोगोंकों संतोष न आया तब ईश्वरवादीयोंका मत निकला. यद्यपि इनोंनें वेदोकी निंदा अपने सूत्रोंमें नहीं करी तो
इनके मत बेद बहुत विरुद्ध है. न्यायका कर्त्ता गौतम १ योगका कर्ता पतंजलि श् वेदांतका कर्त्ता व्यास ३ वैशेषिकका कर्त्ता कणाद ४ नोंनें एक ईश्वरको एक माना और वेदोक्त देवताकों नही माना. इनके मत चलनेंसें वैदिक कर्मकांम वहुत ढीला पर गया. इनोंने अपने मतके शास्त्रोंमें शम, दम, नपरति, तितिक्षा समाधि, श्रद्धा, नित्यानित्य वस्तुका विवेक इत्यादिक साधन लिखके लोगोंकी श्रद्धा दृढ करी. इनोनें ज्ञानहीकों मुख्य साधन माना परंतु तीर्थादिकोकों मानना बोरु दीया. जैसें शिवगीतामें लिखा है.:
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अज्ञान तिमिरजास्कर.
" तनुं त्यजंति वा काइयां श्वपचस्य गृहेयवा । ज्ञानसंप्राप्तसमये मुक्तोऽसौ विगताशयः ॥ न कर्मणामनुष्टानैर्लभ्यते तपसापि वा । कैवल्यं न मर्त्यः किं तु ज्ञानेन केवलं " शिवगीता जो काशी में चांगालकै घरमें जीसका शरीर बुटे सो ज्ञानप्राप्तिके समयमें मुक्त हो जाता है. कर्मका अनुष्ठानसें और तपसें मनुष्य कैवल्यकुं प्राप्त होता नहीं किंतु ज्ञानसें केवलकुं प्राप्त होता है.
ज्ञानपंय वालोंने वर्णाश्रम और कर्मकांमका बहुत उपहास करा. कितने वर्षों तक यह ज्ञानमार्ग चला. जब जैनबोधमतका जोर बढा तब सर्व प्रायें लुप्त हो गये. फेर शंकरस्वामीनें अद्वैतपंथकों फिर बढ़ाया. पीछे नक्तिमार्ग वालोंका पंथ निकाला, पीछे उपासना मार्ग उत्पन्न हुआ. अठारह पुराण और उपपुराण ये पासना मार्ग के प्रतिपादक है. तिसके अंदर शैव वैष्णव ये दो संप्रदाय है, सौ बहुत वधी दूर है. तिनमें शैव मार्ग पुरातन है. और
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