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प्रश्रमखंग.
१४३ राजाको गेडकर दूसरे राजाके राज्यमें जा वसे, तबतो नस राजेको राज्य नष्ठ हो जावे जब नसके संपूर्ण सुख नष्ठ हो जावे; तुमारा ईश्वर जेकर ननकों दंम न देता तो नसकेन्नी सुख नष्ठ हो जाते थे ? नस राजाकी प्रजा एक दूसरेको देखकर नपवन्नी कर सक्ती है. वे जो जीव सुषुप्तिकी तरें प्रलयमें पडे है वे तो कुगनी नही करते, न आगेको करनेके है. ननकों दम न देनेसे ईश्वरका कौनसा राज्य नष्ट हो जाता था, जे कर कोई नास्तिक ऐसे कहे ईश्वरकातो कुछनी नष्ट नहीं होता था परंतु जेकर ईश्वर दंक न देवे तो ईश्वरका न्यायीपणा नही रह. ता है. हम पूछते है, ईश्वरको न्यायी किसने बनाया है कि तुम हमारा न्याय करा करो. जेकर तुम कहोगे अनादि न्यायी है तो हम पूबते है जैसे ईश्वर अनादि है ऐसे जीवनी अनादि है यह क्यों कर नेद पड गया, एक जीव न्यायी, शेष सर्व अन्यायी, एक जीव स्वतंत्र, शेष सर्व परतंत्र, एक जीव सर्वज्ञ, शेष सर्व असर्वज्ञ. जेकर कहोगे जैसे आकाश और जीव दोनो अनादि है तदपि एक चैतन है, एक जड है ऐसा ईश्वर जीवनी न्यायी अन्यायी है. यहनी कहना तुमारा मिथ्या है. क्योंकि जीव और आकाश निन्न निन्न जातिवाले पदार्थ है. इनके नेद होनेमें जातिका नेद कारण है. ईश्वर और जीव एक आत्मतत्व जातिवाले पदार्थ है. इनके स्वरूप में नेद कन्नी नही बन सक्ता, जेकर कहोंगे इनके स्वरूपमें तो नेद नही. जैसे पुण्य पापकी न्यूनाधिकतासें जीवोंका परस्पर नेद है ऐसे पुण्य पापके अन्नावसे जीव ईश्वरका नेद है तो हम पूरते है, ईश्वरमें पुण्य पापका अन्नाव कब दूवा, जेकर तुम कहोगे ईश्वर अनादिसें पुण्य पापसे रहित है, तो हम पूबते
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