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अज्ञानतिमिरनास्कर सत्यार्थप्रकाश पृष्ट ५३० में दयानंदने ऐसी गप्प मारी है दयानंदकाकु कि जैनी कहते है पृथ्वी नीचे नीचे चली जाती है. हम पूरते है जैनशास्त्रमें तो ऐसा लेख नही है. दयानंदने कौनसें जैनशास्त्रमें देख कर यह लिखा है ? हमको आश्चर्य होता है कि दयानंदजी ऐसा निःकेवल जूठ लिख कर जूठ बोलने वालोमें अग्रणीकी पदवी लेते जिसने अपने वेदके अर्थ पूर्वाचार्योके कीये हुवे गेम कर मनोकल्पना करके जूठे मन माने बना लीये है वो दूसरे मतके शास्त्रोका अर्थ क्यों न जूग करेगा ? ऐसेही सत्यार्थप्रकाशमें और अनेक जूठ बांतें लिखी है.
जैन मतकी बाबत जो दयानंदजीने जैनीयोंसें बदूत कुःखी होके जैन मतका कितनाक गबम सबड लिखके खंडन लिखा है तिसका कारण यह है. संवत १७३७ का चौमासा हमारा पंजाब देशके गूजरांवाले नगरमें प्रा. तहां दयानंदजीका बनाया हुवा प्रथम सत्यार्थप्रकाश जब देखने में आया तब तिसमें दयानंदजीने स्वकपोलकल्पित बातोंसें जैन मतका खंमन लिखा देखा. तिसमें एक ऐसी बझी गप्प अनघड लिखीके चार्वाक आनाकके बनाये श्लोक (लिखके लिख दिया के ये श्लोक) जैनोंके बनाये है.तिसकी बाबत पंजाब निवासी लाला गकुरदासने पत्रद्वारा दयानंद सरस्वतीजीको पूगकि तुमने अपने सत्यार्थप्रकाशमें जो श्लोक जैन मतके लिखे है तिनका स्थान बतलाओ कौनसें जैन मतके शास्त्रके है. दयानंदजीने सीवाय धमकियांके अन्य कुनी उत्तर नही दिया. अनुमानर्से दो वर्षतक पूर्वोक्त प्रश्नमें गकुरदाससे पत्र व्यवहार रहा. अंतमें गकुरदासने मुंबई जाकर दयानंदजी योग्य मेसर्स स्मीय और फ्रिअर सोलिसिटर्सकी मार्फत नोटीस दिया. तिसका उत्तरन्नी संतोषकारक न मिला. तब गकुरदासने दया
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