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अज्ञानतिमिरनास्कर. है तुल्य जाति वाले होनेसें जीवनी अनादिसें पुण्य पापसे रहित क्यु नहीं हुवे ? इससे एकला ईश्वर कनी न्यायी नहीं लिह होता है. जेकर नास्तिक कहे जेकर तुख्य जाति करके नेद न मानोगे तो अनादिसें सर्व जीव पापवाले अश्रवा पुन्यबाले होने चाहीये थे परंतु हम देखते है केई जीव पापवाले है, केई पुएयवाले है ऐसेही ऐसेही कोई जीव अनादिसें पुण्य पापसें रहित सिह हो जायेगा. हे नास्तिक ! यह तेरा कहेना अति मूर्खपणेका सूचक है क्यों कि कोई ऐसा जीव नही जो केवल पुण्यवालाही है और ऐलानी को जीव नही जो केवल पापवाला है. किंतु पापपुण्य दोनों करी संयुक्त सब जीव अनादि कालसे चले आते है. जो जीव मुक्तिके साधन करता है वो पाप पुण्यसें रहित हो जाता है. अनादि न्यायी कन्नी पाप पुण्य करके युक्त नही था. ऐसा नास्तिकोंका ईश्वर कनी नही लिइ हो सका. अब कहना चाहिये तुमारे ईश्वरकों किसने न्यायी बनाया है, हे नास्तिक ! न्यायी नसका नाम है जो सच्चको सच्च, जूठकों जू. ठ कहे, किसीका पक्षपात न करे. परंतु तुमारा ईश्वर ऐसा नहीं हो सकता है, क्यों कि जो पहले तो जीवांको पाप करतेको न रोके, जब पाप कर चूके तो पीछे ऊट इंक दनकों तैयार हो जावे. ऐसे अन्यायीको कौन बुद्धिमान न्यायी मान सक्ता है ? इस न्यायसें तो आधुनिक राजेन्नी अच्छे है. जो इनको खबर हो जावे इस मनुष्यनें चोरी करनी है वा खून करना है, नसकों पका कर पहलेही नसकी जामीनी आदि बंदोबस्त कर लेते है. जेकर नास्तिक कहे वेदका उपदेश देकर ईश्वरनेन्नी पहलेही सब जी. वांको पाप करने से रोका है, तो हम पूरते है जो ईश्वरके नपदेशको न मानकर पाप करते है क्या वे ईश्वरसें जोरावर है जो ईश्वर उनको पापकरतेको देख कर उसी वखत नुनको बंद
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