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प्रश्रमखम.
१३॥ जगत्का ई- आगे दयानंदजीने जो जगतका कर्ता ईश्वर माना श्वरका खंडन. है तिसका खंमन लिखते है.
सर्व जगतके बनानेसे ब्रह्मा परमेश्वरका नाम है. यह गुण परमेश्वरमें कबी कही हो सकता है. क्योंकि दयानंदजी सत्यार्थप्रकाशमें लिखता है, पृष्ट में, जब सृष्टिका समय आता है, तब परमात्मा नन परम सूक्ष्म पदार्थोकुं एकहा करता है. नला अनंतशक्तिवाला होकर परमात्मा पामरोंकी तरे पदार्थ एकछे करे है. फेर ननसे महतत्व बनावे है, तिनसें अहंकार, तिससे पंचतत्वमात्र इत्यादि क्रमसें सृष्टि बनाता है तो हम पुरते है इतनी मेहनत करके जो ईश्वर सृष्ठि बनाता है परमात्माको कोई जरूरता है वा वे पदार्थ ईश्वर आगे बिनति करते है. प्रथम पद मानोंगेतो ईश्वर कृतकृत्य नदि रहेगा, कर लिये है करने योग्य काम जिसने नसका कृतकृत्य कहते है. ईश्वरका तो बमा नारी काम रहता मालूम होता है जो इतनी महेनतसे सृष्टि बनाना स्वीकार कीया है. जेकर कहोगे ईश्वरको कोई प्रयोजन नही तो फेर काहेको इतनी मेहेनत नगता है, बिना प्रयोजनतो मंद पुरुषन्नी नही प्रवृत्त होता है. जेकर कहोगे ईश्वर दयालु है, दया करके प्रलयमें स्थित जीवांको प्रलयसे निकाल कर ननका सुख देने वास्ते नवीन शरीर बना कर ननके साथ संबंध कर देता है तो हम पूछते है प्रलयमें ननका क्या दुःख था, जेकर कहोगे वहां सुखन्नी क्या था वहतो सुषुप्तिक सदृश है, तो हम पुगते है नला जिन जीवांकोतो सुखी रचा ननकों तो सुख दीया परंतु जिन जीवांको पुःखी रचा ननकों क्या सुख दीया. जो कुष्ट, नगंदर, जलोदर, शरीरमें कृमि पडे इवे, महाउःख लोग रहे है, खानेको टुकमानी नही मिलता है, शरीरमें रोग हो रहा है, मस्तकोपरि लकडीयांका नार नवाया हुवा है, इत्यादिक परम पुःखोंसें पी
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