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प्रथमखंरु.
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और लोगों कों जूठ, चोरी, कपट, बल, दंज, अन्याय व्यापार अ. नुचित प्रवृत्ति उपदेश द्वारा बचायें नहीतो साधु होनेसें कुछ लाज नही.
दयानंदमतसमीक्षा.
दयानंद सरस्वतीजीने प्रथम
" सत्यार्थ प्रकाश बनाया
था, तिसमें चार्वाकका मत लिखके लिख दियाकी ये श्लोक जैनोके बनाये हुए है. तिनकी बाबत जब दयानंदकों पूछा गया तब पत्रद्वारा धमकीयां शिवाय और अंninके शिवाय कुछनी उत्तर न दीया. तिन पत्रोकी नकल " दयानंदमुखचपेटिका" नामक ग्रं
लिखी और उप गइ है. अब दयानंदजीने नवीन सत्यार्थप्रकाश रचा है. तिसमंत्री कितनीक मिथ्या बातां लिखके फेर जैनमतको जूठा ठहराया है. इस वास्ते दयानंदजीने जो ईश्वरमुक्ति संसारकी रचना प्रमुख बाबत जो इंड्जाल रचा है सो खंगन करके दिखाते है.
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प्रथम जो दयानंदजी अपने स्वरूपमें परमहंस परिव्राजकाचार्य लिखते है सो मिथ्या है. क्योंकि जो परमहंसोकी वृत्ति शास्त्रोंमें लिखी है सो दयानंदजी में नही है. परमहंसको परिग्रह अर्थात् धन रखना नहीं कहा है, और दयानंदजी रखते है. परमहंसको तो माधुकरी निक्षा करनी कही है, ओर दयानंदजी रसाई करवाकर खाते है. परमहंसको असवारीका निषेध है श्रोर दयानंदजी सवारी नपर चरुता है. इत्यादि अनेक बा तो दयानंदजी में परमहंसके लक्षण नही है तो फेर परमहंस परिव्राजकाचार्य क्योंकर हो सक्ते है. और कौनसे वै परमहंस है जिनका दयानंदजी प्राचार्य है. इसवास्ते जो अपनेको परमहंस परिव्राजकाचार्य लिखा है सो मिथ्या है. राजा शिवप्रसाद
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