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अज्ञानतिमिरनास्कर. सतारे हिंदने अपने दूसरे निवेदनपत्रमें लिखा है कि फर डिस्ता. नके विछजनमंमलीनूषण काशीराज स्थापित पाठशालाध्यक्ष डाक्तर टीबो साहिब कहता है, हमतो बमा पंडित जानते थे पर अब ननके मनुष्य होने में संदेह होता है. मैं इतनंतक नही जाता हूं. मैरा कहना इनके ग्रंथोंके संबंध है.
- दयानंदजीने जो जो ग्रंथ वेदनाष्यनूमिका वेदनाष्यादि रचे है, वै सर्व नारतवर्षीय प्राचीन वैदिक धर्मसे विरुइ है. प्राचीन वैदिक धर्मके नष्ट करने वास्तेही दयानंदजीका सर्व उद्यम है,
ओंकारका अ- प्रथम जो ननोंने ॐकारका स्वरूप लिखा है सो का भ्रम. दयानद- मिथ्या है, क्योंकि हमने बहुत पंडितोसे सुना है
मि कि 'अ' 'न' और 'म्' इन तीनों वर्गोसें ॐ बनता है, और ये तीनों अकर क्रमसें विष्णु, शिव, ब्रह्मा इनके वाचक है. जेकर दयानंदजीनी इस तरें मान लेता तो इनका काकंददग्ध हो जाता क्योंकि दयानंदजी इन तीनों अर्थात् विष्णु, शिव, ब्रह्माको देव ईश्वर नहि मानते है. इस वास्ते दयानंदजीने ॐकाररूप पीठ बांधने वास्ते मृषा अर्थरुप पथ्थरोकी सामग्री एकही करके पीठिका बांधी है. सो यह है—दयानंदजी लिखते वै, अकारसें विराट, अग्नि और विश्वादि, नकारसें हिरण्यगर्न, वायु और तैजसादि, मकारसें ईश्वर, आदित्य प्राज्ञादि नामोंका वाचक और ग्राहक है. अब विचार करके देखिये तो यह कथन मिथ्या है क्योंकि तीन अकरोंसें जव ॐकार बना है तब तो इन तीनो अक्षरांका जोवाच्यार्थ है तिसके समुदायका नाम ईश्वर दूधा, परंतु वास्तवमें एक वस्तुका नाम ॐकार नही है. तथा दयानंदजी लिखता है इन तीनो अकरोसे परमेश्वरके विराट, अग्नि, वायु आदि जे नाम है वे सर्व ग्रहण करे है. यह लखना मिथ्या है, क्योंकि किसी को
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