________________
प्रथमखम.
33 च्च सुतोत्पत्तिः कलौ पंच विवर्जयेत् ॥ संन्यासश्च न कर्तव्यो ब्राह्मणेन विजानतः । यावर्णविन्नागोस्ति यावछेदः प्रवर्तते ॥ संन्यासं चाग्निहोत्रं च तावत्कुर्यात्कलौयुगे । एतेन चत्वार्यब्दसदस्राणि चत्वार्यब्दशतानि च कलेर्यदागविष्यन्ति तदा त्रेतापरिग्रहः ॥ स्मृतिचंडिकायां ।
अर्थ-एक जगें लिखा है कलियुगमें यह काम नदी क रणे. समुश्में जाना १ सन्यास लेना ३ नीय जातिकी कन्या विबाह करना ३ देवर पति करना ५ मधुपर्कमें जीव मारना ५ श्राहमें मांस खीलाना ६ वानप्रस्थाश्रम लेना ७ पुनर्विवाह करना ७ वत वर्षतक ब्रह्मचर्य पालना ए मनुष्यका यज्ञ करना १० घोमेका यज्ञ करणा ११ जन्म तक यात्रा करण। १२ गायका यज्ञ करना १३. फेर दूसरी जगें कलिमें यह नही करणा लिखा है॥ विधवाका पुनर्विवाह १ बमे नाईको बड़ा हिस्सा देना २ सन्यास लेवी ३ नाश्की विधवासें विवाह करना ४ गोवध करना ५ ॥ तीसरी जगें यह लिखा है २ मामाकी बेदीसें विवाह करना १ मो वध करना २ नरमेध करना ३ अश्वमेध करना ४ मदिरा पिना ४ फिर चौथी जगें यह लिखा है ॥ देवरको पति करना । स्त्रीका पुनर्विवाह करना २ नीच जातीकी कन्या विवाद ३ युमें ब्राह्मणको मारना । समुश्यात्रा करनी ५ सत्र नामक यज्ञ करना ६ संन्यासी बनना ७ जन्मतक यात्रामें फिरना G गोसव नाम यज्ञमें गोवध करना ए सौत्रामणी यझमें मदिरा पीना १० अग्निहोत्र ११ मरणप्रायश्चित्त संसर्गदोष १३. दच और औरस विना अन्य पुत्र करना १५ शामित्र अर्थात यझमें पशु मारनेवाला पुरोहित १५ सोमविक्रय १६. पांचमी जगें यह कलिमें न करना लिखा है. अनिहोत्र १ गोवध २ संन्यास ३ श्रादमें मांसन्नकण 4 देवरको
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org