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प्रथमखंम. धर्मकों आश्वलायनादि सूत्रकार सम्मत करते है. तब सौधातके बोला जिस वाल्मीकनें वशिष्टादिकोंके आये बलमी मारी तिसी वाल्मोकने आजही पीग आयें राजऋषि जनकको दहीं मधुसें मधुपर्क करा. तब नांमायन बोला-जिनोंने मांस खाना नहीं त्यागा तिनका कल्प ऋषिलोक वैसाही करते है, और राजा जनक मां सका त्यागीया. इस वास्ते दही मधुसे मधुपर्क करा.
पद्मपुराणके पातालखंमने रामाश्वमेधकी कथा है. तिसके साठ अध्याय है तिनमेंसे सातमें अध्यायमें ऐसा लिखा है कि रामचंदजीने अयोध्यामें आया पीछे बहुत पश्चात्ताप करा कि मैमें युइमें अपने हाथसें बहुत ब्राह्मण रावणादिक मारे तिनका पाप क्योंकर उतरेगा, ऐसा प्रभ ऋषियोंसे करा. तब ऋषियोंने जवाव दीनाकि ये सर्व पाप नाश करने वास्ते तुं अश्वमेध यज्ञ कर. अन्य कोश्नी पाप दूर करणेका नपाय नहीं और आगे जो बडे बडे राजे हो गये है तिनोंने अश्वमेध यज्ञ करके स्वर्गवास पाया है. तिनकी तरें तूंनी अश्वमेध कर तो सर्व पाप नष्ट हो जावेगे. सर्व कयन नीचे लीखा जाता है।
राम उवाच ॥ ब्राह्मणास्तु पूजार्दा दानसन्माननोजनैः । ते मया निहता विप्राः शरसंघातसंदितैः ॥ कुर्वतो बुझिपूर्वमे ब्रह्महत्यास्तु निंदिता ॥इति ॥ प्रोक्तवंतं रामं जगाद स तपोनिषिः । शेष नवाच ॥ श्रृणु राम मदावीर लोकानुग्रहकारक । विप्रहत्यापनोदाय तव यचनं ब्रुवे। सर्व सपापंतरति योश्वमेधं यजेत वै । तस्मात्त्वं यज विश्वात्मन् नाजिमेधेन शोनिना ॥ स वाजिमेधो विप्राणां इत्यापापापनोदनः । कनवान्यं महाराजो दिलीपस्तव पूर्वजः।मनुश्च सगरो राजा मत्तो नदुरात्मजः । एते ते पूर्वजाः सर्वे यज्ञा कृत्वा पदं गताः ॥ ३६ अध्याय ७ में॥
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