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अज्ञानतिमिरनास्कर. १ए विघन यझसे पशु वृद्धि होती है. २० राजा अश्वमेध करे. १ पंचशारदीय यज्ञमें पशु मारणा. इति लाट्यायनः ।।
ब्राह्मणोंकी जितनी शाखा है तितनेही तिनके सूत्र है लिन सर्वका हाल लिखा नही जाता है इस वास्ते इनको गेमके स्मृतियोका हाल देखते है. स्मृति नामके ग्रंथ पचास वा साठ है हरेक ऋषिके नामसे पिगना जाता है. परंतु तिनमें मनु और याज्ञवल्क्य ये दो श्रेष्ट गिने जाते है. वेदोमेंन्नी लिखा है कि जो मनुने कहा है, सो ठीक है इस वास्ते प्रथम मनुकेही थोमेसे श्लोक लिखते है. १ तैलै/हियवैर्मासन्निर्मूलफलेन वा ।
दत्तेन मासं तृप्यंति विधिवत्पितरो नृणां । अण् ३-२६७ २ छौ मासौ मत्स्यमांसेन त्रीन हारिणेन तु ३-२६७ ३ षण्मासांचागमांसेन पार्षतेन च सप्त वै ३-२६ए ४ दश मासान्तु तृप्यंति वराहमहिषामिषैः ।
शशकूर्मयोस्तु मांसेन मासानेकादशैव तु ॥ ३-७० ५ वर्धिणशस्यमांसेन तृप्ति दशवार्षिकी ३-२७१ ६ कालशाकं महाशकाः खालोहामिषं मधु ।
आनत्यायैव करप्यंते समुत्पन्नानि च सर्वशः ॥ ३-२७२
अर्थ--तिल, सही, जव, नमद वा मूलफल श्नमेंसे हरेक वस्तु शास्त्र रीतीसे देवेतो पितर एक मास तक तृप्त रहतें है.
१ सरके मांससे दो भास, हिरण्यके मांसके तिन मास,
३ डाग मांसले उ मास और चित्र मृगके मांससे सात मास,
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