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प्रथमखम. ५ जो मांसका त्यागी है, तिसकों अश्वमेध यज्ञका फल मिलता है. और सो गृहस्थही थकां मुनि जानना. यह वचन टीकाकार लिखता है कि अवश्य नकण करना चाहिये, मोदितादि मांसका त्याग नही.
हविष्यानेन वै मासं पायसेन तु वत्सरम् ।
मात्स्यहारिणकौरनशाकुनगगपार्षतैः ॥ २५७ २ ऐगरोरववाराहशाशैमासैर्यथाक्रमम् ।
मासवृक्ष्यान्नितृप्यंति दत्तैरिद पितामहाः॥॥ ३ खम्गामिषं महाशल्कं मधुवन्यानमेवच । लोहामिषं महाशाकं मांसं वाणिसस्य च ॥ २ ॥
अर्थ-१-२ अन्नसें एक मास, दीरसें एक वर्ष, मत्स्य, ह. रिण, मीढा पदी, बकरा, काला हरिण, सांबर, सूयर ससा, इन जीवांको मांस पितरांको देवे तो मास अधिकअधिक वृश्केि हिसा बसें पितर तृप्त रहते है.
३ गैंडेका मांस, महाशक मत्स्यकी जाति है तिसका मांस मध, और वनमें नुत्पन्न हुआ अन्न, लाल रंगके बकरेका मांस, कालशाक और वार्धीण अर्थात् धौले बकरेका मांस देवे तो अनंत फलदायक है.
विनायकशांतिका पाठ नीचे लिखते है, मत्स्यान्पक्कांस्तथैवामान्मांसमेतावदेव तु ॥ ६ ॥ पुष्पांश्च सुगंधं च सुरां च त्रिविधामपि ॥ श्ए ।
अर्थ-कच्चा पक्का मठ, और तैसाही मांस, पुष्प, सुगंधी पदार्थ, और तीन प्रकारको मदिरा अर्थात् गुम, महूआ, आटा श्न तीनोंका निकला मदिरा इनको विनायक और तिसकी माता अंबिकाकों चढाना,
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