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अज्ञानतिमिरनास्कर. अथ नक्ष्यान्नक्ष्य प्रकरणमें याज्ञवल्क्य स्मृतिके
श्लोक लिखते है. नदयाः पंचनखा सेधागोधाकछपशल्लकाः । शशश्च मत्स्येष्वपिहि सिंहतुंमकरोहिताः १७६ तथा पाठीनराजीवसशल्काश्च द्विजातितिः । अतः शृणुध्वं मांसस्य विधिं नक्षणवर्जने ॥ १७७ प्राणात्यये तथा आहे प्रोदितं द्विजकाम्यया । देवान् पितृन समान्यर्च्य खादन्मांसं न दोषनाक् ॥ १७० वसेत्स नरके घोरे दिनानि पशुरोमन्तिः। समितानि दुराचार यो हंत्यविधिना पशून् ॥ १७॥ सर्वान् कामानवाप्नोति हयमेधफलं तथा । गृझेपि निवसन् विप्रो मुनिर्मास विवर्जनात् ॥ १७०
अर्थ- पांच नखवाला जीवमें सेह, गोह, कलु, शटक, ससा, गेंमी ये प्राणी नक्षण करणे योग्य है. और पाठीन और राजीव ये दोनो जातके मठ ब्राह्मणोंने लक्ष्य है.
२ मासके नक्षणकी तथा परित्यागकी विधि सुण लो.
३ माणकटमें तथा श्राइमें मांस नक्षण करना. पोक्षित मांस तथा ब्राह्मण नोजन वास्ते अथवा देवपितृकार्यके वास्ते सिह करा मांस देवपितरकी पूजा करा पीछे बाकी रहा होवे सो लक्षण करे तो दोष नहीं. प्रोदितं अर्थात् पोक्षण नामक संस्कार करके यझकार्य करा पोडे बाकी रहे सो प्रोदित मांस कहा जाता है. तिसका अवश्य नक्षण करना, कारण न करे तो यझकी समाप्ति न होवे.
४ जो आदमी विधि विना पशु मारता है सो नरकमें जाता है.
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