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प्रथमखं. पैलज्ञपिकों झग्वेद दीना १ ऐतरेय नेद ॥ वैशंपायनकों यजुर्वेद १ तैतरेय नेद ७६ जैमिनिकों सामवेद १ ताणु नेद १००० सुमंतुकों अथर्व वेद १ गोपथ ब्राह्मण २ नेद एए । सो एकैक आचार्यके पेटमें अनेक नेद नपर लिखे प्रमाणे शाखाके दूये है तिनकी संख्या प्राचीन ग्रंथोमें लिखी है. जिस प्रमाणे शाखा लिखी है तैसी अब देखने में नही आती है. परंतु वर्तमानमें जो शाखा मिलती है तिनके नाम आगे लिखे जाते है.
ग्वेद-सांख्यायनी ? शाकल २ वाष्कल ३ आश्वलायनी । मांडुक ए. यह पांच शाखा झग्वेदको इस कालमें मालुम होती है.
यजुर्वेद कृष्ण तैतरेय । आपस्तंब ? हिरण्यकेशी २ मैत्राणी ३ सत्याषाम ४ बौक्षयनी ए ये पांच कृष्णयजुर्वेदकी शाखा है. यजुर्वेद शुक्लवाजसनेयी याज्ञवल्क्यने करा तिसकी शाखा कएव १माध्यंदिनी २ कात्यायनी ३ सर्व यजुर्वेदकी शाखा ॥
सामवेद-कौथुमी १ राणायणी ३ गोनिल ३। चौथा अथर्व वेद-तिसकी शाखा दो पिपलाद ' शौनकी शा
एकैक शाखाके जो प्राचार्य हो गये है तिनोने अपनी अपनी शाखाके वास्ते एकैक सूत्र बनाया है तिसके अनुसार ब्राह्मण लोग यज्ञादि कर्म करते है। तिससे हरेक ब्राह्मणका नाम होता है तिसका वेरवा तपसीलवार नीचे लिखा जाता है.
नाम १ नपनाम २ गोत्र ३ प्रवर ४ सूत्र ५
दामोदर पंड्या कपिअंगीरस आमहियवदयस सांख्यायन वेद ६ शाखा ७ मत 6 कुलदेव ए जाति १० झग सांख्यायन स्मार्त शिव नागर
वैशंपायन ऋषि और याज्ञवल्क्य ऋषि आपसमें लगे तिससे यजुर्वेदमें शुक्ल यजुर्वेद नत्पन हुआ. तिसमें १७ शाखा है. तिनका नाम वाजसनेय पमा तिनसे पंदरांका तो ठिकाना
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