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प्रथमखंम.
३५ आश्वलायन श्रौतसूत्र उत्तरषट्क ६ अध्यायें सप्तीकंडिका, १३ वैश्वकर्मणम्पमं महाव्रते ॥ नारायण वृत्ति । ए ते सर्वे गोपशवः ८ अन्वहं वैकैकश एकादशिनाम् ॥ नारा यण वृत्ति । एकादशिनामेव एकैकमादित आरश्य अहन्यहनी क्रमेणालमेरन्. ___ उत्तरपट्क ३ अध्यायमें। सूर्यस्तुतायशस्काम.-गोसव विवधौ पशुकामः वाजपेयेनाधिपत्यकामः-अध्याय ४ में ज्योतिदिकामस्य नवसप्तदशः प्रजापतिकामस्य । पंचमें अध्याये । आङ्गिरसं स्वर्गकामः-चैत्ररथमन्नाद्यकामः-अत्रेश्वतुर्वीरं वीरकामः-जामद पुष्टिकामः ऋतूनां पडहं प्रतिष्टाकामः-संभार्यमायुष्कामः-संवत्सरप्रवल्हं श्रीकामः अथ गवामयनं सर्वकामः--
अर्थ-महाव्रत यझमें ऋषन्न अर्थात् बलद देना चाहिये । आश्वलायन. पशु एकादशीमें नित्य एक एक पशु मारणा. आण सूर्यस्तुता यज्ञ करे यश मिलता है. आण गोसव यज्ञ करनेसे पशु प्राप्ति होते है. आप वाजपेय यज्ञ करनेसै अधिकार मिलता है. आण ज्योति यज्ञ करनेसे समृधि होति है. आण नवसप्त दश यज्ञ करनेसे प्रजा होती है. आण आरिस यज्ञ करनेसें स्वर्ग प्राप्त होता है. आण चैत्ररथ यज्ञ करनेसे धान्यवृद्धि होती है. आण अत्रेश्चतुर्वीर यज्ञ करनेसें धैर्यवृद्धि होती है आप
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