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अज्ञानतिमिरज्ञास्कर.
१५ स एवं विदादह्यमानः सहैव धूमेन स्वर्गलोक मेतीतिहविज्ञायते ४-४-७
अर्थ - १ श्रोती ब्राह्मण रोगी होवे तो तिसको निसहित गाम बाहिर कोई ठिकानें लेजाके रख देना.
२ जेकर निरोग दो जावेतो एक पशुकी इष्टि करके घरमें ले याना.
३ कदापि मर जावे तो
४ गाम में फालके स्मशान में ले जाना.
५ श्रनुस्तरणी अर्थात् एक जानवर साथ में ले जाना. ६ यह जानवर गाय चाहिये.
७ अथवा एक रंगकी बकरी चाहिये.
८ और सो बकरी काली चाहिये.
TU तिस जानवरके गलेमें दोरी बांधके मृतकके दाहिनें दाबांधनी तिसको मुरदेके साथ चलावना.
१० अनुस्तरणीका वध करके तिसका कलेजा काढना, तिस सें मुरदेको माथा ढांकनां.
११ तिसका यकृत काढके मुरदेके हाथमें देमा. १२ हृदय मुरदेके हृदय उपर देना.
१३ इसी तरें सर्व अंग मुरदेके अंगो उपर गेरने, अनुस्तरणी का चर्म तिससे मुरदेका सर्व अंग ढक देना.
१४ मुरदेकी स्त्रीकों पुनर्विवाह करणेका उपदेश करके काढनी.
१५ इस तरें जिसका सुरदा बाला जावे सो मनुष्य स्वर्ग में जाता है.
गृह्यसूत्र के चौथे अध्यापकी नवमी कैमीकामें शूलगव नामक यज्ञ लिखा है, तिसके सूल नीचे लिखे प्रमाणे है.
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