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ग्रज्ञानतिमिरनास्कर. लीस अध्यायकी है तिसके साथ चौदह अध्यायका शतपथ ब्राह्म ण है तिसको देखते है. तिसमें क्या लिखा और जो दयानंद सरस्वती स्वकपोलकल्पित वेदनाष्यनूमिकादिमें जगै जगें शत पथ ब्राह्यणकी साखी देते है सोन्नी मालुम पम जायगा कि शत पथ ब्राह्मणनी ऐसा हिंसक यजुर्वेदका हिस्सा है. ऐसा सुनने में आता है कि व्यासजीने ऋषियोंसे लेके सर्व
कमी वेद मंत्राको एकछे करके तिनके तिन ग्रंथ बनाये. भाग व्यासजी एकका नाम ऋग्वेद रख्खा सौ पैल ऋषिको दीना. ने बनाया है. दूसरेका नाम यजुर्वेद रख्खा सो वैशंपायन ऋषिकों दीना-तिनके पास एक याज्ञवल्क्य नामका शिष्य था ते यादवल्क्य तथा सर्व ऋषि आपसमें बहुत लडे तब याझवस्क्यने वेदविद्या वम दीनी तिस विद्याको तीतरोंने चुगके गायन करी तिस्सेतो तैतरेय कृष्ण यजुर्वेद तैतरेय ब्राह्मणादि बनाये गये.
और याज्ञवल्क्यने सूर्यकी नपासना करके नवां वेद रचा तिसका नाम शुक्ल यजुर्वेद रख्खा. शतपथ ब्राह्मणमें सर्वसें पीछेका यह वाक्य है सो नीचे लिखे जाता है.
१ आदित्यानमिानि शुक्लानि यजुषी वाजसनेयेन याज्ञवल्कीयेनाख्यायंते । शतपथ०१४ अध्या०
इस वेदकी संहितामें चालीस अध्याय है तिनकी अनुक्रमणिका. दर्शपौर्णमास १-२ आधान ३ अग्नीष्टोम ४
आतिथ्येष्टि ५-६ नपांशुग्रहमंत्र ७ आदित्यग्रहमंत्र राजसूयसौत्रामणि यज्ञ १० चयन ११ चिति १२-१३--१४०-१५ शतरूड़ीयंमत्र १६
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