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अज्ञानतिमिरनास्कर. नही देते है. और किसी एकांत स्थल जंगल में पढनेमें आता है. वैयरी शत्रु और शके कानमेंनी नही पड़ने देते है. सन्नामें जब ब्राह्मण एकठे होते है तब संहितातो पढते है परंतु आरण्यक नही पढते है. पितृमेधके अध्यायमें जो गाय बालनी मुरदेके साथ लिखी है तिसके नाम नीचे मूजब समजणाः
१ राजगवी. २ अनुस्तरणी. ३ सयावरी. इस अध्यायमें कितनेक मंत्र नाष्य सहित नीचे लिखनेमें आते है. १ परेयुवा १ संप्रक्तो। तैत्तरेय आरण्यक अध्याय ६
॥नाष्य ॥ पितृमेधस्य मंत्रास्तु दृश्यतेऽस्मिन् प्रपाठके पितृमेधमंत्राविनि योगो नरबाजकल्पे बौधायनकल्पे चान्निहितः ।
अर्थ-पितृमेधके मंत्र इस प्रपाठकमें दिखते है. और पितृमेध मंत्रोंका विनियोग नाराज और बौधायन सूत्रोंमें कहा है, २ अपैत दूहय दिहाविभः पुरा तै० आर ०अ०६ कल्प । दासाः प्रवयसो वहेयुः अयैनं अनसा वहंतीत्येकेषां अर्थ-मुरदेको शूवहे कितनेक कहते है गामें घालके लेजाना ३.इमौ युनज्मि ते वन्हि असुनी थाय वाढेवे
॥ नाष्य ॥ श्मौ बलीवौ शकटे योजयामि । यह दो बैल गामेमें जोतताटुं. ४ पुरुषस्या सयावरी विते प्राणमसिनसां आरण्यके कल्प। अथास्याः। प्राणान्वित्रंसमाना ननु मंत्रयते हे पुरुषस्य सयावरी-राजगवी तब प्राणं शिथिलं कृतवानस्मि-पितन् उपेदि अस्मिन लोके प्रजया पुत्रादिकया सह कम प्रापय ॥
अर्थ-अथ इस गायके प्राणाको विनाश अर्थात् हनते हुये
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