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अज्ञानतिमिरास्कर.
दयालु ईश्वर- इस वास्ते वेद ईश्वर दयालुके बनाये कथन करे
के बनाये वेद नहीं है. दूये नहीं है. इन पूर्वोक्त कथनोंसें तो ऐसा सिद्ध होता है कि वेद नदी मांसाहारी और निर्दय पुरुषोंके कथन करे ये है, जेकर कोई कहें कि हम हिंसाका नाग टोम देवेंगे और अहिंसादि नाग अलग काढ लेंवेंगे फेर तो हमारे वेद खरे रहे जायेंगे इनको हम कहते है वि०
उत्तर - जब तुम वेदोंमेंसे हिंसा के जाग काढ गेरोंगे तब तो पीछे कुबजी रहनेका नही क्योंकि जिसमें हिंसा न होवे ऐसा तो वेदका कोनी नाग नही है.
तथा पशुके मारणेके वास्ते वेदमें पांच शब्द कहे है. आलजन १ करण २ नपाकरण ३ शमन ४ संज्ञपन ५ सूरतका यज्ञेश्वरशास्त्रीनें आर्यविद्यासुधाकर नामक ग्रंथ गप्पी धोके दिनों प्रसिद्ध करा है. तिसमें अनेक प्रकारके यांकी विधि है. पशुयाग अंग बेदन इत्यादिक वेदमें लिखे मृजब विधि बताई है. तिसमें बालजन शब्दका अर्थ लिखा है. सो नीचे लिखेसें जानना.
नपाकरणं नाम देवकर्मोपयोगित्वसंपादकः पशोः संस्कार विशेषः एतदादिसंज्ञपन पर्यंतः क्रियाकलाप श्राननशब्देनानिधीयते । प्रकाश र पृष्ठ १ ॥
अर्थ- देवताके अर्थे पशुकों संस्कार करके वध करे तदां तक जो जो क्रिया होती है तिन सर्वकों आलमन कहते है.
नरमेधक कर्म जहां वेद में लिखा है तिसमें अनेक प्रकार की जाति अनेक स्वरूपके अनेक धंधेके दोसौ दस आदमी २१० लिखे है. वे सर्व यूप अर्थात् यज्ञस्तंनसें बांधे जाते है और तिनका प्रोक्षण पुरुषसूक्त मंत्र करणा लिखा है. कितनीक जगें पशुकों बांधके बोड देना जिसको उत्सर्ग कहते है लिखा है परंतु
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