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अज्ञानतिमिरनास्कर. दयावदितः पुरस्तात्रुदयाति सूर्यः । तावदितोऽमुन्नाशय । योऽस्मा न्छेष्ठि यञ्च वयं विष्मः"॥ अर्थ । ब्रह्मण परिमर इस अनुष्ठानसे राजाके सर्व शत्रु मरण पाते है. इनके अंग उपर पाषाणका बखंतर होवे तोनी सो रहनेका नहीं. इस मंत्रको जपेतो शत्रु सैन्य नागे
और फत्ते मिले. महावीर नामक यज्ञ करके शत्रुके नाशनार्थ मंत्र पढना कि मेरा शत्रु यमकी दाढामें जाय. शमि खेजडीका झाम शत्रुके बिगेने तले गाडना तिस्से शत्रु तुरत मर जाता है. इसी तरे ऋग्वेदके आश्वलायन सूत्रमें श्येन अर्थात् बाजपदीका होम विधान अर्थात् शत्रुके मारनेवास्ते अनुष्ठान है लिनको अनिचार कर्म कहते है. सो सूत्र यह है. श्रौत सूत्र, आश्वलायन अध्याय ए कांड ७ । “श्येनाजिरान्यामनिचरन् १ विघनेनान्निचरन्” ॥३॥ ऐसे हिंसक शास्त्रोंकों परमेश्वर कथन करे कहने इस्से अधिक अज्ञानी दूसरा कौन है ? श्नही हिंसक शास्त्रोंने सर्व जगतमें हिंसाकी प्रवृत्ति करी है. जब कोई इनशास्त्रोंको बुरा कहता है उसीको ब्राह्मण नास्तिक कहते है. कितनेक कहते है, ईश्वर मन्युष्योंकों कहता तुम इस रीतिसें मेरी प्रार्थना करो. यह कहना जूठ है. क्योंकि वेदों में किसी जगेनी नहीं लिखा है कि ईश्वर मनुष्योंकों कहता है कि तुम ऐसें प्रार्थना करो. और न किसी प्राचीन नाप्यकारने ऐसा अर्थ लिखा है. और जो व्यानंदसरस्वतीने नवीन नाष्य बनाया है नसमें जो ऐसा अर्थ लिखा है कि ईश्वर मनुष्योकों कहता है कि तुम ऐसे कहो यह कहना दयानंदसरस्वतीका अप्रमाणिक है, स्वकपोलकल्पित होनेसें. क्योंकि दयानंदसरस्वती हमारे समयमें विद्यमान है* दयानंदका और उनके बनाए नाष्यकों काशी वगैरेके पंमित
प्रमाणिक नहीं कहते है. बलिके दयानंदके लेखकों * यह ग्रंथ लिखनेके समयमें दयानंदसरस्वती विद्यमान थे,
पाखंड.
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