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प्रथमखं.
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भावार्थ:-देव यज्ञ करके स्वर्गमें गये तिस वास्ते मनुष्य और ऋषीयोंने यज्ञ करणा और यूप स्थापन करणा यूप अर्थात् यज्ञार्थ जो पशु ख्याते है तिसके बांधनेका स्तंभ, पीछे तिस प शुके शमन अर्थात् मारकी प्रज्ञा लिखी है.
२. दैव्याः शमितार आरभध्वमुत मनुष्या इत्याह ० अन्वेनं माता मन्यतामनु पितानुभ्राता सगर्योऽनुसखा सयूथ्य इति जनित्रैरेवैनं तत्समनुमतमालभंत उदीचीनां अस्य पदो निधत्तात्सूर्य चक्षुर्गमयताद्वांत प्राणमन्ववसृज तादंतरीक्षमसुं दिशः श्रोत्रं पृथिवीं शरीरं० ऐतरेय ब्राह्म ण २ पंचिका ६ खंड ॥
इसतरे इस वेदमंत्र में पशुके मातापितासें प्रार्थना करते है यह पशु हमको देन तद पीछे अध्यर्यु अर्थात् मुख्य पुरोहित तिसकी आज्ञा पशुको शमित्रशाला अर्थात् वध करनेकी शाला में ले जा करके उत्तरकी तर्फ इसके पग राखके शमिता अर्थात् वघ करनेवाला पुरोहित तिस पशुको मुष्टीसें गला घोंटके मारता है. तद पीछे स्वधीत अर्थात् सुरा और इमासुनु अर्थात् लकमीका ढीमा पर तिस पशुकों डालके तिसको फामके तिसका मांस काढते है. तिसका होम करके जो मांस बाकी रहिता है तिसकों सर्व पुरोहितमें बांटा करते है अर्थात् तिस मांस दिस्से करके सर्व ब्राह्मण बांट लेते है सो नीचे प्रमाणे श्रुतिसें जानना ॥
३ अथातः पशोर्विभक्तिस्तस्य विभागं वक्ष्यामो हनु सजिव्हे प्रस्तोतुः । इत्यादि ७ पंचिका १ खंड ऐतरेय अर्थ-मांस काढके देना इनु जिव्हा सहित प्रस्तोताका हिस्सा है प्रस्तोता नपर लिखे पुरोहितो में १२ बारवां । कंठ ककुद संयु
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