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अज्ञानतिमिरजास्कर.
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राज रहा और सर्व लोग विद्या पढते रहे तो शेष रही सही वी वैदिक हिंसा बंद हो जावेगी.
कर्मकांड ब्राह्म- जबसे कर्मकांम नक्त देशोंसें न गयाहै, तबसें णोकी आजीविका है. ब्राह्मण लोग बहुत दुःखी हो गये हैं; क्योंकि ब्राह्मण लोगों कि आजीविका विशेष करके कर्मकांडसेंडी होती थी. क्योंकि कोई पुरुष शांतिक पौष्टिक इष्टापूर्तादि करे तो ब्राह्मणको पैसा मिले सो कर्म लोगोंके जीसें नवता जाता है, क्योंकि बहुते अंग्रेजी फारसी पढने वालेतो ब्राह्मणोंका कहना जूठा मानते है और ब्रह्मसमाजी और दयानंदसरस्वती वगैरे तो ब्राह्मणोंके कर्मकांडकी आ जीविकाकी बेमी मोवनेकों फिरतेहै, क्योंकि ब्राह्मणोंने स्वार्थतत्पर होके लोगोंकों ऐसे मजाल में गेरा है कि लोगोंकों सच्च जूटकी कुछ खबर नहीं पकती है. जैनोकों जो ब्राह्मण नास्तिक कहते है तिसका सच्चा कारण तो यह है, जिस बखत जैन बौद्धोंके ध
की प्रबलता नई तिस बखत ब्राह्मण जो इनके विरोधी थे सो इनके साथ लगनें और इनको नास्तिक कहने लगे, क्योंकि इनके कर्मaina नष्ट होनेसें इनकी आजीविका बंद हो गईथी. चाहो कोई पंथ निकले परंतु ब्राह्मणोकी आजीविका जंग न करे. तबतो ब्राह्मणस पंथ वाले कों कुछ नहीं कहते है और द्वेषनी नहीं करते है. संन्यासका प्र- प्राचिन कालमें जब अद्वैत मत अर्थात् ज्ञानपंथ निकला तब लोग संन्यासी होने लगे, तब ब्राह्मसोने तिनके साथ मिलके ऐसि मर्यादा बांधी कि प्रथम कर्म करके पीछे सर्व संन्यास लेवे, इस वास्ते अद्वैत वादीयोंके साथ ब्राह्मणोंका झगडा नहीं हुआ, जब भक्ति मार्ग निकला तिनोंने कaise निंदा करी तिनके साथ ब्राह्मणोंका वैर आज तक चला जाता है; परंतु जब ब्राह्मणोंका कर्मकांड ढीला पसा तब ब्राह्म
चार.
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