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अज्ञानतिमिरनास्कर. है. तिस वास्ते अहमदनगर जील्लेमें बहुत गामोंमें जैनीयोंकी बहुत वस्ती है, इस वास्ते तिहां यह नहीं होते है. इसी तरे मुं. बईमें गुजराती, मारवामी जैनी और वैष्णवकी वस्ती बहुत है इसवास्ते आजतक मुंबई में यज्ञ नहीं हुआ और जिस जगें ब्राह्मणोंका बहुत जोर है तहां अबत्नी यज्ञ होतेहै. पुनामें वाजपे- सन १७७२ स्वीमें पुनामें वाजपेय यज्ञ हुवा था, य यज्ञ. तिसमें २४ चोवीस बकरे होमे थे. और बमे बसे नामावर गृहस्थ वेदिये, ब्राह्मण, शास्त्री पंमित एकठे हुए थे. ध. मशास्त्रमें लिखा है, यज्ञ करनेसे देश और नूमि पवित्र होते है.
और कोनसे देशमें यज्ञ करना, किस देशमें न करना, तिसका विवरा लिखा है. तिनमें गंगा, यमुनाका कांग सबसे श्रेष्ट लिखा है. पूर्व कालमें तिस जगे बहुत यज्ञ दुवे है. तिस वास्ते तिन देशांको पुण्यनूमि कहते है. इस लिखनेसे यह सिद्ध हुआ कि वेदाहासे असंख्य पशु यझमें होमके ब्राह्मण खा गए. एकही शास्त्र फेर अपने आपकोंतो ईश्वरके आमतीये और जैनी सो आधा स
- दयाधर्मीयोंकों नास्तिक कहते हुए लज्जा क्यों नहिं धा जूठा होही करते है ? तथा को कहते हैं वेदमें जो निहिलक नही सकताहै. कथन हम मान लेंगे और हिंसा प्रतिपादक श्रुतियोंको गेड देंगे यहनी कथन मिथ्या है. एकही शास्त्र सो आधा सच्चा और आधा जूग यह होही नहीं सकता है. ईश्वरके कहे शास्त्रमें यह क्योंकर हो सकता है कि अन्नप्राशन, मौजिबंधन, लग्न, अंत्येष्टि, श्राइतर्पण, श्रावणी इत्यादिक कर्म तो अचे, शेष सर्व यज्ञादिक जूठ है. यहतो सर्व सात्विक धर्मकाही प्रनाव है, जो कितनेक लोक जीवदयाधर्मकों जान गये है, अब वो समय फिर आता मालुम नहीं होता; जो सर्व लोग वैदिक हिंसा फिर करने लग जावे, ऐसातो मालुम होता है कि जेकर अंग्रेजोहिका
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