________________
अज्ञानतिमिरनास्कर. सेतुबंध तक कतल करे और जैन मतके लाखों मंदिर तोड मूर्ति फोड अपनें देव पधराय दीयेथे, और लाखों अति नतम पुस्तकोंके नंमार जला दीयेथे; नस बखत इनकी शांति मुज्ञ देखतेतो पूर्वोक्त सर्व नूल जाते.और जैन मतमें श्रेणिक, अशोकचंद, चेटक, नदयन, वीतमय पाटनका उदयनवत्स, नदयन कोणिकका वेटा चंप्रद्योत,नव जैन राजाओ- मलिक, नवलेबिक, पालक, नंद, चंगुप्त, बिंदुसार, का समयमें भी जैनीयोंकी अशोक, संप्रति और वनराज कुमारपाल प्रमुख अशांति. नेक जैनराजे महावीरजीके समयमें और पीछे हुए तिनके राज्यमेंनी जैनीयोंने किति मत वालेके साथ जबरदस्ती नहीं करी. इस कालमेंनी सैकों जिन मंदिरोंमें जैपुर, गिरनार, आबु, करणाट प्रमुख देशोमं ब्राह्मणोंने अपने देव स्थापन कर गेमे है. थोमेंही वर्षोंकी बात है कि नज्जयनमें जैनीयोंने एक मंदिर नया बनवायाथा. जब तैयार हुआ तब ब्राह्मणोंने झटपट महादेवका लिंग पधराय दीया. इसीतरें संवत १९३१ में पालीमें जैनी-- योंकी धर्मशालामें महादेवका लिंग पधराय दीया क्योंकि ब्राह्मण मनमें जानते है ये राजे हमारे धर्ममैं है, इस बास्ते जैनी कहां पुकार करेंगे, इनकी कौन सुनेगा इत्यादि अनेक नपश्व ब्राह्मणोंने जैनीयोंकों करे परंतु जब जैनी अपनी पूरी औज पर थे इनोंने किसी अन्यमतवालेको मतकी बाबत जबरदस्ती नहीं करी, बलकि सरकारी पुस्तक इतिहासतिमिरनाशकके तीसरे खंडमें जहां राजा अशोकचंके चौदह हुकुम पाली हौंमे लिखे है तिनमेंसें सातवें हुकमकी नकल यहां दरज करते है. खुलासा सातमें आदेशका " चाहे जिस पाखंमका फकीर हो चाहें जहां रहे कोई नसे
मे नहीं. सबकी कोशिश अखलाककी पुरस्तीमें है.” इस लिखनेसे यह सिह होता है कि जैन राजायोंने किसी मतवालेके साथ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org