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अध्ययन ४ सू, ४ षड्जीवनिकायस्वरूपम्
२०३ तेजश्चित्तवदाख्यातम् , अनेकजीवं, पृथक्सत्त्वमन्यत्र शस्त्रपरिणतात् । वायुश्चित्तवानाख्यातो-ऽनेकजीवः पृथक्सत्त्वोऽन्यत्र शस्त्रपरिणतात् , वनस्पतिश्चित्तवानाख्यातोऽनेकजीवः पृथक्सत्त्वोऽन्यत्र शस्त्रपरिणतात् ॥४॥
सान्वयार्थः-तंजहा-वह इस प्रकार है- (१) पुढविकाइया पृथ्वीकायिक, (२) आउकाइया अप्कायिक,(३) तेउकाइया तेजस्कायिक, (४)वाउकाइया वायुकायिक,(५)वणस्सइकाइया वनस्पतिकायिक,(६)तसकाइया-त्रसकायिक॥ अब आचार्य महाराज एक-एककी सचित्तता बतलाते हैं
(१) पृथ्वीकाय. ___ सान्वयार्थः-(भगवानने) पुढवी पृथ्वीको चित्तमंतं सचित्त अक्खाया= कही है, वह अणेगजीवा अनेकजीववाली है-अनेकजीवोंका पिण्डभूत है, पुढोसत्ता उसमें अनेकजीव भिन्न-भिन्न रहे हुए हैं, अन्नत्य-सिवाय सत्थपरिणएणं शस्त्रपरिणतके, अर्थात् जहां शस्त्र नहीं लगा है वहांका पृथ्वीकाय सव सचित्त है । इसी प्रकार छहों कायोंमें समझ लेना चाहिये ॥१॥
(२) अपकाय. __सान्वयार्थः-आऊ-जल चित्तमंतं सचित्त अक्खाया कहा है, वह अणेगजीवा=अनेक जीवोंका आश्रयभूत है, पुढोसत्ता वे अनेक जीव भिन्नर रहे हुए हैं, अन्नत्थ-सिवाय सत्थपरिणएणं शस्त्रपरिणतके ॥२॥
(३) तेजस्काय. तेज-तेजस्काय चित्तमंतं सचित्त अक्खाया कहा गया है, वह अणेगजीवा अनेक जीवोंका आश्रयभूत, है, पुढोसत्ता=वे अनेक जीव भिन्नभिन्न रहे हुए हैं, अन्नत्थ-सिवाय सत्थपरिणएणं-शस्त्रपरिणतके ॥३॥
। (४) वायुकाय. वाऊ वायु चित्तमंत सचित्त अक्खाया कहा गया है, वह अणेगजीवा अनेक जीवोंका आश्रय है, पुढोसत्ता-भिन्न-भिन्न जीवोंवाला है, अन्नत्थ-सिवाय सत्थपरिणएणं शस्त्रपरिणतके ॥४॥
(५) वनस्पतिकाय. वणस्सई-वनस्पति चित्तमंतं-सचित्त अक्खाया कही गई है, वह अणे