Book Title: Agam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 556
________________ ૧૧ अध्ययन ५ उ. २ गा. ५-६-समयमर्यादया गोचरीगमनोपदेशः ५०३ पडिलेहिसी नहीं देखते, अतः अप्पाणं आत्माको किलामेसि-किलामनाखेद-पहुंचाते हो च और संनिवेसं गामकी गरिहसि-निन्दा करते हो । तात्पर्य यह हुआ कि गोचरीका समय हुए विना घूमनेसे साधु भगवानकी आशाका विराधक होता है, और दीनता प्रगट करनेके कारण उसके चारित्रमें मलिनता होती है; अतः जिस देशमें जो भिक्षाका समय हो उसी समयमें साधुको भिक्षाके लिए जाना चाहिये ॥५॥ टीकाहे भिक्षो ! त्वम् अकाले असमये चरसि-भिक्षाथै गच्छसि किन्तु कालं-भिक्षोचितसमयं न प्रत्युपेक्षसे नाद्रियसे, तेन च हेतुनाऽऽत्मानं क्लमयसि पीडयसि मिक्षालाभाभावेन भ्रमणाधिक्येन चेति भावः । संनिवेशं ग्रामं च पुनः गर्हसे निन्दसि । भगवदाज्ञाविराधकत्वेन दैन्यमकाशनेन च चारित्रमालिन्यं जायते, ततोऽनुचितकाले भिक्षार्थ न गन्तव्यमिति ॥ ५॥ मूलम् सइ काले चरे भिक्खू , कुजा पुरिसकारियं । अलाभु-त्ति न सोइजा, तवु-त्ति अहियासए ॥६॥ छाया-सति काले चरेद् भिक्षुः, कुर्यात्पुरुषकारम् । अलाम इति न शोचेत्, तप इति अधिषहेत ॥ ६॥ सान्वयार्थः-भिक्खू साधुको काले-भिक्षाका समय सइ-होनेपर चरे गोचरीके लिए धूमना चाहिए और पुरिसकारियं-उत्साह पूर्वक घूमनेरूप हे भिक्षु ! आप असमयमें भिक्षाके लिए जाते हैं, समयका खयाल नहीं रखते। इसी कारण अधिक भ्रमण करनेसे या भिक्षाके न मिलनेसे तुम अपनी आत्माको पीडित करते हो, और ग्राम-नगरकी निन्दा करते हो। अकालमें भिक्षाके लिये गमनरूप भगवानकी आज्ञाकी विराधना करनेसे तथा दीनताप्रगट करनेसे चारित्रमें मलिनता आती है इसलिए अनुचित समयमें भिक्षाके लिए नहीं जाना चाहिए ॥६॥ હે ભિક્ષુ! આપ અસમયમાં શિક્ષાને માટે જાઓ છે, સમયને ખ્યાલ રાખતા નથી એ કારણે વધારે ફરવાથી યા ભિક્ષા ન મળવાથી તમે તમારા આત્માને પીડિત કરે છે અને ગ્રામ-નગરની નિ દા કરે છે અકાળે શિક્ષાને માટે જવારૂપી ભગવાનની આજ્ઞાની વિરાધના કરવાથી તથા દીનતા પ્રકટ કરવાથી ચારિત્રમાં મલિનતા આવે છે, તેથી અનુચિત સમયે ભિક્ષાને માટે જવું ન नमे (५)

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