Book Title: Agam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 590
________________ - 13७ । अध्ययन ५ उ. २ गा. ४०-४१-मद्यपायिनो दोपप्रकटनम् ५३७ दुकृतसंगोपनाय नयनरमायामृपाकल्पितवचनरचनादिनानाप्रकारकोपायमनुसंदधानो न जातु सयमसमाधिमधिगच्छतीति भावः । दुर्मतिः विपर्यस्तबुद्धिः साधुः, मरणान्तेऽपि मरणावधिसमयेऽपि संवर-सर्वसावधविरतिलक्षणं चारित्रं कदापि नाराधयनि-न निष्पादयति, चारित्रसाधनगृद्धपरिणामाभावात् । 'निच्चुग्विग्गो' इत्यनेन पापात्मना नित्यशङ्कितत्वं मुचितम् । 'दुम्मई'पदेन व्यसनिनां मतिमालिन्यमवश्यम्भावीत्याविष्कृतम् ॥ ३९ ।। मूलम्-आयरिए नाराहेइ समणे आवि तारिसो। गिहत्था वि णं गरिहंति, जेण जाणति तारिसं ॥ ४० ॥ छाया-आचार्यान् नाराधयति, श्रमणाचापि तादृशः । गृहस्था अपि तं गर्दन्ते, येन जानन्ति तादृशम् ॥४०॥ सान्वयार्थः-तारिसो-उस-पूर्वोक्त-प्रकारका दुराचारी साधु आयरिए रत्नाधिकोंको अवि य-तथा समणे-साधुओंको भी नाराहेइ-विनय वैयावच आदिसे नहीं आराध सकता है, जेण-निस कारणसे गिहत्या वि=गृहस्थ भी f= अपने किये हुए दुराचारको छिपानेके लिए मायाचार और असत्य आदिके नये-नये उपाय सोचा करता है। उसकी संयम सम्बन्धी समाधि किसी प्रकार भी नहीं रहती। ऐसा दुर्बुद्धि साधु मृत्युकी अवधिके समय भी सर्वसावद्ययोगके त्यागरूप संवर की आराधना नहीं करता, क्योंकि उसके वैसे विशुद्ध भाव नहीं होते। 'निच्चुग्विग्गो' इससे ऐसा सूचित किया है कि पापी सदा सशंक रहता है। 'दुम्मई' पदसे यह प्रगट किया है कि कुव्यसनीकी मतिमें मलिनता अवश्य आजाती है ॥ ३० ॥ પિતાના દુરાચારને છુપાવવાને માયાચાર અને અસત્ય આદિના નવા નવા ઉપાયે વિચાર્યા કરે છે એની સંયમ સબંધી સમાધિ કઈ પ્રકારે રહેતી નથી. એ દુબુદ્ધિ સાધુ મૃત્યુની અવધિના સમયે પણ સર્વસાવદ્યાગના ત્યાગરૂપ સંવરની આરાધના કરતું નથી, કારણ કે તેને એવા વિશુદ્ધ ભાવ થતા નથી. निच्चुचिग्गो शहथी सम सूयित ४२वामा २ायु छ ॐ पापी सहा स० ४ २ छे. दुम्मई २४थी मेम अट यु छ दुव्यसनानी भतिमा मलिनता अपश्य मावे छे (36)

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