Book Title: Agam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

Previous | Next

Page 563
________________ - ५१० श्रीदशवैकालिको तम्मि उन श्रमणादिकोंके नियत्तिए चले जाने पर संजए-साधु भत्तहाआहार व अथवा पाणट्ठाए पानीके लिए उवसंकमिज्ज-जावे ॥१३॥ टीका-प्रतिपेधिते-दात्रा प्रतिषेधं प्राप्ते वा=अथवा दत्ते अन्नादिके, वाशव्दादातुस्तूष्णीभावावलम्बनाद् विलम्बादिनिमित्तवशाद्वा ततः तत्स्थानात् तस्मिन् बनीपकादौ निवृत्ते प्रतिनिवृत्ते सति संयतः भक्तार्थ पानार्थ वा उपसं. क्रामेत्-भिक्षा ग्रहीतुं गच्छेत् ।। १३ ॥ मूलम्-उप्पलं पउमं वावि, कुमुयं वा मगदंतियं । ८८ १० ११ १२ १३ १४ अन्नं वा पुप्फसच्चित्तं, तं च संलंचिया दए ॥१४॥ तं भवे भत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पियं । २५ . ० २२ . २५ २४ २९ 3 .. दितियं पडियाइक्खे, न मे कप्पइ तारिसं ॥१५॥ छाया-उत्पलं पद्मं वाऽपि, कुमुदं वा मगदन्तिकाम् ।। अन्यद्वा पुष्पसचित्तं, तच संलुच्य दद्यात् ॥ १४ ॥ तद् भवेद् भक्तपानं तु संयतानामकल्पिकम् । ददती मत्याचक्षीत, न मे कल्पते तादृशम् ।। १५॥ सान्वयार्थ:-उप्पलं नील कमल पउमं रक्त कमल बावि अथवा कुमुयं - चन्द्रविकासी कमल वा-या मगदंतिय-मालती-मोगरेके फूलको वा-अथवा ।. अन्नं दुसरे भी इसी प्रकारके जो पुप्फसचित्तं सचित्त पुष्प ही तंच-उनको भी (अगर) संलंचिया लोच करके दए देवे तो तंबह भत्तपाणं तु आहारपानी संजयाण-संयमियोंको अकप्पियं-अकल्पनीय भवे होता है, अतः दितियं देनेवालीसे पडियाइवखे-कहे कि तारिसं-इस प्रकारका आहार मे मुझे न कप्पइ-नहीं कल्पता है ॥१४॥१५॥ दाताके वनीपक आदिको दान देनेकी मना कर देने पर, अथवा अन्न आदिके देदेने पर या मौन साध लेने पर, अथवा विलम्ब होने आदिके कारणसे जब वह वनीपक आदि उस घरसे लौट जाय तव संयमीको भक्त-पानके लिए उस घरमें जाना चाहिए ॥ १३॥ દાતાએ વનપક આદિને દાન દેવાની મનાઈ કર્યા પછી અથવા અન્ન આદિ આપી ચૂક્યા પછી યા મોન સાધી લીધા પછી, અથવા વિલબ છે ઈત્યાદિને કારણે જ્યા એ વનપક આદિ એ ઘરથી પાછા ફરે ત્યારે સમી: વકત-પાનને માટે એ ઘરમાં જવું જોઈએ (૧૩)

Loading...

Page Navigation
1 ... 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623