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अध्ययन ४ सू. ६ त्रसकायवर्णनम् जेसि केसिंचि पाणाणं अभिकंतं पडिकंतं संकुचियं पसारियं रुयं भंतं तसियं पलाइयं, आगइगइविन्नाया।जे य कीडपयंगा। जा य कुंथुपिवीलिया । सवे बेइंदिया, सवे तेइंदिया, सवे चउरिदिया, सवे पंचिंदिया, सवे तिरिक्खजोणिया, सवे नेरइया, सवे मणुया, सत्वे देवा, सवे पाणा परमाहम्मिया । एसो खल्लु छटो जीवनिकाओ तसकाउ-त्ति पवुच्चइ ॥६॥
छाया-अथ ये पुनरिमेऽनेके वहवस्त्रसाः प्राणिनस्तद्यथा-अण्डजाः पोतजा जरायुजा रसजाः संस्वेदजाः सम्मूच्छिमा उद्भिज्जा औषपातिकाः, येषां केषाश्चित्माणिनामभिक्रान्तं प्रतिक्रान्तं संकुचितं प्रसारितं रुतं भ्रान्तं त्रस्तं पलायितम् , आगतिगतिविज्ञातारः । ये च कीटपतङ्गाः। याश्च कुन्थुपिपीलिकाः। सर्वे द्वीन्द्रियाः, सर्वे त्रीन्द्रियाः, सर्वे चतुरिन्द्रियाः, सर्वे पञ्चेन्द्रियाः, सर्वे तिर्यग्योनिकाः, सर्वे नैरयिकाः, सर्वे मनुजाः, सर्वे देवाः. सर्व प्राणाः परमधर्माणः । एष खलु षष्ठो जीवनिकायस्त्रसकाय इति पोच्यते ॥६॥
(६) त्रसकायवर्णन. सान्वयार्थः--से-अथ पुण और जे-जो इमे ये ( आगे कहे जानेवाले) अणेगे अनेक प्रकारके यहवे बहुतसे तसा त्रस पाणा-पाणी है, तंजहावे इस प्रकार है-(१) अंडया अण्डेसे उत्पन्न होनेवाले, (२) पोयया विना जेर (जरायु-आंवल-जड)के अर्थात् विना ही कुछ मलभागके वस्त्रसे पूंछे हुएके समान उत्पन्न होनेवाले, (३) जराउया-जेरसे लिपटे हुए उत्पन्न होनेवाले, (४)रसया रसमें उत्पन्न होनेवाले, (५) संसेइमा-पसीनेसे उत्पन्न होनेवाले, (६) संमुच्छिमा संमूच्छिम, (७) उन्भिया पृथ्वीको भेदकर उत्पन्न होनेवाले (शलभ आदि), (८) उववाइया-उपपात जन्मवाले-देव और नारकी, जेसिं-केसिंचि इनमें से जिन किन्हीं पाणाणं याणियोंका अभिकंतं-अभिमुख गमन होता है, पडिकंत-प्रतिकूल गमन होता है, संकुचियं शरीरमें संकोच-सिकुडन होता है, पसारियं शरीरमें फैलाव होता है, रुयं शब्दका प्रयोग होता है, भंत-इधर-उधर भ्रमण होता है, तसिय-उद्वेग होता है, पलाइयं-डरसे भागना देखा जाता है, (वे त्रस) आगइगइविन्नाया आगमन और गमनको जाननेवाले, य और जे-मो