Book Title: Agam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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श्रीदशैवैकालिकसूत्रे
छाया - तथैवोच्चावचं पान - मथवा वारकधावनम् । संस्वेदिमं तण्डुलोदकम्, अधुनाधतं विवर्जयेत् ॥७५॥
अव पान ग्रहण करने की विधि बताते हैंसान्वयार्थ :- तदेव जैसे अशन उसीप्रकार पाणं=पान उच्चावयं-उच्च-सुन्दर वर्णादिसे युक्त, जैसे दाख आदिका धोवन, अवच - सुन्दर वर्णादिसे रहित जैसे मेथी र आदिका धोवन वारधोयणं - गुड़ के घड़ेका धोवन संसेइमं =भाजीका तथा आटेकी थालीका धोवन अदुवा=अथवा चाउलोदगं= चाँवलोंका धोवन ( ये सब यदि ) अहुणाधोयं तुरन्तका धोया हुआ हो तो उसे (साधु) विवज्जए= वर्जे - न लेवे ॥७५॥
टीका - अशनग्रहण विधेरनन्तरं पानग्रहण विधिमाह ' तहेवृच्चावयं' इत्यादि । तथैव यथाऽशनं तेनैव प्रकारेण, पानं पेयं, कर्मणि ल्युट् उच्चावचमिति उदक = च अवाक् च उच्चावचम् - अनेकप्रकारम् उत्कृष्टानुत्कृष्टमित्यर्थः, तत्र उत्कृष्टं = रुचिरवर्णगन्धरसस्पर्शयुक्तं द्राक्षादिधावनजलं प्रपाणकादिकं च अनुत्कृष्टं = रुचिरवर्णादिहीनं मेथिका - करीर - शमी फलिका- तिलादिधावनजलम् । वारकधावनं = गुडघट-घृतघटादि धावनजलं, संस्वेदिमं = क्वथितशाकादिजलं पिष्टस्थालीप्रक्षालनजलच, तण्डुलोदकं=तण्डुलधावनजलम् । एतत्सर्वम् अधुनाधौतम् - तत्काल धौतम्-अन्त
,
अशन ग्रहण करनेकी विधि बताकर अब पान ग्रहण करने की विधि दिखाते हैं - ' तहेवुच्चावयं ' इत्यादि ।
उच्च (उत्कृष्ट) मनोज्ञ वर्ण गन्ध रस स्पर्शवाला दाख आदिका धोवन तथा शर्बत आदि पान, अवच (अनुत्कृष्ट) अमनोज्ञ वर्ण गन्ध रस स्पर्शवाला मेथी केर साँगरी तथा तिल छाछ आदिका घोवन आदि पान, गुड़ या घीके घड़ेका घोवन, औटाये (उवाले) हुए हरा शाक आदिका पानी, आटेकी थाली आदिका धोवन, चावलका धोवन । ये सब यदि तत्कालके धोये हुए हों अर्थात् अन्तर्मुहर्त्तके अभ्यन्तरके धोये हों तो
અશન ગ્રહણ કરવાની વિધિ ખતાવીને હવે પાન ગ્રહણ કરવાની વિધિ तावे . - तदेबुच्चावयं इत्यादि
ઉચ્ચ (ઉત્કૃષ્ટ ) મનહર વણું ગધ રસ સ્પર્શીવાળુ દ્રાક્ષ આદિનું ધાવણુ તથા શરખત આદિ પાન, અવચ (અનુત્કૃષ્ટ) અમનેજ્ઞ વગધ રસસ્પર્શીવાળુ मेथी, डेरा, जीन्डानी जी (सागरियो ) तथा तल છાશ આદિનુ પાન, ગેળ યા ઘીના ઘડાનું Àત્રણ, ઉકાળેલા લીલા શાક આટાની થાળી આદિ ધાવણુ, ચેખાનું ધાવણુ, એ
બધા જે તાજા
ધાવણ આદિ આદિનું પાણી, ધાએલાં હાય
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