Book Title: Agam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 552
________________ - _13 १४ २० अध्ययन ५ उ. २ गा. १-आहारपरिभोगविधिः ४९९ निष्पादिनं शीतमुष्णं वाऽन्नम्, अम्लतक्रपाचितवल्लचणकचूर्णनिष्पादितं शीतमुष्णं वा शाकविशेषादिकं, पर्युषिततक्रादिरूपं पानं च, तेषाममनोज्ञगन्धवत्वादिति भावः। सुगन्ध-सुरभिगन्धयुक्तं वा घृतपूरपायसादि तस्यैलालवङ्गकेसरकपूरादिमनोज्ञगन्धवृत्त्वादिति भावः। सर्व-मनोज्ञामनोज्ञरूपं सकलं भुञ्जीत न तु मुश्चेत् परित्यजेत्-नावशेषयेदिति भावः ॥१॥ मूलम्-सज्जा निसीहियाए, समावन्नो य गोयरे । अयावयट्ठा भुच्चाणं, जइ तेणं न संथरे ॥२॥ तओ कारणमुप्पण्णे, भत्तपाणं गवेसए । विहिणा पुवउत्तेण इमेणं उत्तरेण य ॥३॥ छाया-शय्यायां नैषेधिक्यां, समापन्नश्च गोचरे। अयावदर्थ भुक्त्वा , यदि तेन न संस्तरेत् ॥ २ ॥ ततः कारणे उत्पन्ने, भक्त-पानं गवेषयेत् । विधिना पूर्वोक्तेन, अनेन उत्तरेण च ॥३॥ सान्वयार्थः-सेज्जा-वसति-उपाश्रय में निसीहियाए-आहार करने के स्थान पर य अथवा गोयरे-भिक्षाचरीमें समावन्नो प्राप्त हुआ मुनि अयावयहाजरूरीसे कम अर्थात् थोड़ा भुच्चाणं-खाकर-खानेपर जइ-यदि-अगर तेणंउस अशनादिसे न संथरे-न सरे अर्थात् संयमयात्राका निर्वाह के लिए पर्याप्त -पूरा न हो तओ=तो कारणं क्षुधा-वेदनीयकी शान्ति न होनेरूप कारण के उप्पन्ने-उत्पन्न होनेपर साधु पुव्वउत्तेण-पूर्वोक्त-" संपत्ते भिक्खकालम्मि" खट्टी छाछकी बनी हुई ठढी या गर्म कढी आदि शाक, पर्युषित (वासी) खट्टी छाछ आदि पान, ये अमनोज्ञ गन्धवाले होते हैं। और घेवर पायस आदि, एलची लवंग केसर आदिके मिश्रित होनेसे मनोज्ञ गन्धवाले होते हैं, इन सबको समभावसे भोगवे ॥१॥ ચણ આદિની બનાવેલી ઠડી યા ગરમ રોટલી આદિ અન્ન, ખાટી છાશની બનેલી ઠંડી યા ગરમ કઢી આદિ શાક, પર્કષિત ખાટી છાશ આદિ પાન, એ બધાં અમનેઝ ગંધવાળાં હોય છે અને ઘેબર, પાયસ (દૂધપાક) આદિ, એલચી, લવીગ, કેસર આદિથી મિશ્રિત હેઈને મને ગધ વાળા હોય છે, એ मधाने समाव सागवे. (१)

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