Book Title: Agam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अध्ययन ५ उ. १ गा. ५७-५८-पुष्पादिमिश्रिताहारनिषेधः
सान्वयार्थ:-असणं पाणगं वावि खाइमं तहा साइमं अशन पान खादिम तथा स्वादिम (यदि) पुप्फेसु-सचित्त फूलोंसे बीएसु-शालि आदि बीजोंसे वाअथवा हरिएसु-हरित कायसे उम्मीसं-मिश्रित होज हो तो तं-वह भत्तपाणं तु अशनादि संजयाणं साधुओंके लिए अकप्पियं-अकल्पनीय भवे है, (अतः) दितियं-देती हुईसे साधु पडियाइक्खे-कहे कि तारिसं-इस प्रकारका आहारादि मे=मुझे (लेना) न कप्पइ-नहीं कल्पता है ॥५७॥-५८॥ ___टीका-'असणं०' इत्यादि, 'तं भवे०' इत्यादि च । यदशनादिकं सचित्तपुष्प-बीज-हरितकायैरुन्मिश्र=संयुक्तं भवेत्तदकल्प्यमिति वाक्यार्थः । सूत्रे 'पुप्फेम' इत्यादौ तृतीयार्थे सप्तमी ॥५७॥५८॥ मूलम् असणं पाणगं वावि, खाइमं साइमं तहा ।
उदगम्मि होज्ज निक्खितं, उत्तिंगपणगेसु वा ॥५९॥ ૩ ૮ ૪ ૫ ૧૬ ૧૭ तं भवे भत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पियं । दितियं पडियाइक्खे, न मे कप्पइ तारिसं ॥६॥ छाया-अशनं पानकं वापि, खाद्यं स्वाद्य तथा ।
उदके भवेनिक्षिप्तमुत्तिङ्गपनकेषु वा ॥५९॥ तद्भवेद्भक्त-पानं तु, संयतानामकल्पिक(त) म् ।।
ददती प्रत्याचक्षीत, न मे कल्पते तादशम् ॥६॥ सान्वयार्थः-असणं पाणगं वावि खाइमं तहा साइमं जो अशनादि चार प्रकारका आहार (यदि) उदगम्मि-सचित्त जलके ऊपर वा अथवा . उत्तिंगपणगेसु-कीड़ियोंके दरके ऊपर या लीलन-फूलन पर निक्खित्तं-रखा
'असणं०' इत्यादि, तथा 'तं भवे' इत्यादि । जो अशन पान आदि, सचित्त पुष्प, सचित्त बीज और हरितकायसे युक्त हो वह, संयमीके लिये कल्पनीय नहीं है, अतः ऐसा आहार देनेवालीसे साधु कहे किऐसा आहार मुझे नहीं कल्पता है ।। ५७ ॥५८॥
असणं० त्याहि, तथा तं भवे. त्याहि २ मशनपान माहि, सचित्त પુષ્પ, સચિત્ત બીજ અને હરિતકાય (વનસ્પતિ) થી યુક્ત હોય તે સયમીને માટે કલ્પનીય નથી, એટલે એ આહાર આપનારીને સાધુ કહે કે–એ આહાર भने यता नथी (५७-५८)