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जिस स्थान पर किया जाये, वह स्थान एकान्त, शान्त और जीव-जन्तुओं से रहित हो।'
___ द्रव्यकायोत्सर्ग, भावकायोत्सर्ग की ओर बढ़ने का एक उपक्रम है। द्रव्य स्थूल है, स्थूलता से सूक्ष्मता की ओर बढ़ा जाता है। द्रव्यकायोत्सर्ग में बाह्य वस्तुओं का परित्याग किया जाता है, जैसे - उपधि का त्याग करना, भक्त-पान आदि का त्याग करना, पर भावकायोत्सर्ग में तीन बातें आवश्यक हैं - कषायव्युत्सर्ग, संसारव्युत्सर्ग और कर्मव्युत्सर्ग।
कषायव्युत्सर्ग में चारों प्रकार के कषायों का परिहार किया जाता है। क्षमा के द्वारा क्रोध, विनय के द्वारा मान को, सरलता से माया को तथा सन्तोष से लोभ जीता जाता है।
संसारव्युत्सर्ग में संसार का परित्याग किया जाता है। संसार चार प्रकार का है - द्रव्यसंसार, क्षेत्रसंसार, कालसंसार और भावसंसार। द्रव्यसंसार चार गति रूप है। क्षेत्रसंसार अधः, ऊर्ध्व और मध्य लोक रूप है। कालसंसार एक समय से लेकर पुद्गलपरावर्तनकाल तक है। भावसंसार जीव का विषयासक्ति रूप भाव है, जो संसार-भ्रमण का मूल कारण है। द्रव्य, क्षेत्र, काल संसार का त्याग नहीं किया जा सकता है । आचारांग' में कहा है - जो इन्द्रियों के विषय हैं, वे ही वस्तुतः संसार हैं
और उनमें आसक्त हुआ आत्मा संसार में परिभ्रमण करता है। आगम साहित्य में यत्र-तत्र 'संसारकंतारे' शब्द का व्यवहार हुआ है। जिसका अर्थ है - संसार के चार गतिरूप किनारे हैं। संसार परिभ्रमण के जो मूल कारण हैं, उन मूल कारणों का त्याग करना। मिथ्यात्व, अव्रत, प्रमाद, कषाय और अशुभ योग का परित्याग करना ही संसारव्युत्सर्ग है।
अष्ट प्रकार के कर्मों को नष्ट करने के लिये जो कायोत्सर्ग किया जाता है, उसे कर्मव्युत्सर्ग कहते हैं। कायोत्सर्ग के जो विविध प्रकार बताये गये हैं, उनमें शारीरिक दृष्टि से और विचार की दृष्टि से भेद किये गये हैं। प्रयोजन की दृष्टि से कायोत्सर्ग के दो भेद किये गये हैं - चेष्टाकायोत्सर्ग और अभिभवकायोत्सर्ग।
___ चेष्टाकायोत्सर्ग दोषविशुद्धि के लिये किया जाता है। जब श्रमण शौच, भिक्षा आदि कार्यों के लिये बाहर जाता है तथा निद्रा आदि में प्रवृत्ति होती है, उसमें दोष लगने पर उसकी शुद्धि के लिये प्रस्तुत कायोत्सर्ग किया जाता है। अभिभवकायोत्सर्ग दो स्थितियों में किया जाता है - प्रथम दीर्घकाल तक आत्मचिन्तन के लिये या आत्मशुद्धि के लिये मन को एकाग्र कर कायोत्सर्ग करना और दूसरा संकट आने पर। जैसे विप्लव, अग्निकांड, दुर्भिक्ष आदि। चेष्टाकायोत्सर्ग का काल उच्छ्वास पर आधारित है। यह कायोत्सर्ग विभिन्न स्थितियों में ८, २५, २७, ३००, ५००, और १००८ उच्छवास तक किया जाता है। अभिभवकायोत्सर्ग का काल जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट एक वर्ष का है। बाहुबलि ने एक वर्ष तक कायोत्सर्ग किया था।
१. तत्र शरीरनिस्पृहः, स्थाणुरिवोर्ध्वकायः प्रलंबितभुजः प्रशस्तध्यानपरिणतोऽनुन्नमिता नतकायः परीषहानुपसर्गाश्च सहमानः तिष्ठनिर्जन्तुके __ कर्मापायाभिलाषी विविक्ते देशे।
- मूलाराधना २-११३, विजयोदया पृ. २७८-२७९ २. चठविहे संसारे पण्णत्ते, तं जहा -
दव्वसंसारे, खेत्तसंसारे, भावसंसारे, कालसंसारे। - स्थानांग ४,१२,६१ ३. जे गुणे से आवटे।
- आचारांग १/१/५ ४. सो उस्सग्गो दुविहो चिट्ठए अभिभवे य नायव्यो।
भिक्खायरियाइ पढमो उवसग्गभिजुंजणे बिइओ॥ - आवश्यकनियुक्ति, गाथा १४५२ ५. (क) तत्रचेष्टाकायोत्सर्गोऽष्ट-पंचविंशति-सप्तविंशति-त्रिशत-पञ्चशत-अष्टोत्तरसहस्त्रोच्छ्वासान यावद् भवति।
अभिभव-कायोत्सर्गस्तु मुहूर्तादारभ्य संवत्सरं यावद् बाहुबलिरिव भवति। - योगशास्त्र ३, पत्र २५० (ख) अन्तर्मुहूर्त: कायोत्सर्गस्य जघन्यः कालः वर्षमुत्कृष्टः।
- मूलाराधना २, ११६, विजयोदयावृत्ति
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