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चतुर्थ अध्ययन : प्रतिक्रमण अतिचारों का पाठ
पहिली इरियासमिति के विषय जो कोई अतिचार लाग्यो होय तो आलोऊं, द्रव्य थकी छ काया का जीव जोइने न चाल्यो होऊं, क्षेत्र थकी साढ़ा तीन हाथ प्रमाणे जोइने न चाल्यो होऊं, काल थकी दिन को देखे बिना रात को पूंजे बिना चाल्यो होऊं, भाव थकी उपयोग सहित जोइने न चाल्यो होऊ, गुण थकी संवरगुण पहिली इरियासमिति के विषय जो कोई पाप दोष लाग्यो होय तो देवसिय सम्बन्धी तस्स मिच्छा मि दुक्कडं।
दूसरी भाषासमिति के विषय जो कोई अतिचार लाग्यो होय तो आलोऊं, द्रव्य थकी भाषा कर्कशकारी, कठोरकारी, निश्चयकारी, हिंसाकारी, छेदकारी, भेदकारी, परजीव का पीडाकारी, सावज सव्वपापकारी कूड़ी मिश्र भाषा बोल्यो होऊ, क्षेत्र थकी रस्ते चालतां बोल्यो होऊ, काल थकी पहर रात्रि गया पीछे गाढ़े गाढ़े शब्द बोल्यो होऊ, भाव थकी रागद्वेष से बोल्यो होऊ, गुण थकी संवरगुण दूसरी भाषासमिति के विषय जो कोई पाप दोष लाग्यो होय तो देवसिय सम्बन्धी तस्स मिच्छा मि दुक्कडं।
तीसरी एषणासमिति के विषय जो कोई अतिचार लाग्यो होय तो आलोऊं, द्रव्य थकी सोले उद्गमण का दोष, सोले उत्पात का दोष, दश एषणा का दोष इन बयालीस दोष सहित आहार का पाणी लायो होय, क्षेत्र थकी दो कोश उपरांत ले जाईने भोगव्यो होय, भाव थकी पाँच मांडला का दोष न टाला होय, गुण थकी संवरगुण, तीसरी एषणा समिति के विषय जो कोई पाप दोष लाग्यो होय, तो देवसिय सम्बन्धी तस्स मिच्छा मि दुक्कडं।
चौथी आयाणभंडमत्तनिक्खेवणा समिति के विषय जो कोई अतिचार लाग्या होय तो आलोऊं, द्रव्य थकी भांडोपकरण अजयणा से लीधा होय, अजयणा से रख्या होय, क्षेत्र थकी गृहस्थ के घर आंगणे रख्या होय, काल थकी कालोकाल पडिलेहणा न की होय, भाव थकी ममता मूर्छा सहित भोगव्या होय, गुण थकी संवरगुण, चौथी समिति के विषय जो कोई पाप दोष लाग्यो होय तो देवसिय सम्बन्धी तस्स मिच्छा मि दुक्कडं ॥ ४ ॥
पांचवीं उच्चार-पासवण-खेल-जल्ल-सिंघाण-परिट्ठावणियासमिति के विषय जो कोई अतिचार लाग्यो होय तो आलोऊं, द्रव्य थकी उंची नीची जगह परठव्यो होय, क्षेत्र थकी गृहस्थ के घर आंगणे परठव्यो होय, भाव थकी जाता आवसही आवसही न करी होय, परिठवते पहले शक्रेन्द्र महाराज की आज्ञा नहीं ली होय, थोड़ी पूँजीने घणो परिठव्यो होय, परठने के बाद तीन बार वोसिरे वोसिरे न कीन्हो होय, आवता नि:सही न करी होय, ठिकाणे आईने काऊसग्ग न कर्यो होय, गुण थकी संवर गुण पाँचवीं समिति के विषय जो कोई पाप, दोष लाग्यो होय तो देवसिय सम्बन्धी तस्स मिच्छा मि दुक्कडं ॥ ५ ॥