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[ आवश्यकसूत्र पडिक्कमामि चउहिं विकहाहिं – इत्थीकहाए, भत्तकहाए, देसकहाए, रायकहाए। ___ पडिक्कमामि चउहि झाणेहिं – अट्टेणं झाणेणं, रुद्देणं झाणेणं, धम्मेणं झाणेणं, सुक्केणं झाणेणं।
भावार्थ – कषायसूत्र - चार कषायों के द्वारा होने वाले अतिचारों का प्रतिक्रमण करता हूँ । चार कषाय - क्रोधकषाय, मानकषाय, मायाकषाय और लोभकषाय।
संज्ञासूत्र – चार प्रकार की संज्ञाओं के द्वारा जो अतिचार-दोष लगा हो, उसका प्रतिक्रमण करता हूँ। चार संज्ञाएँ - आहार संज्ञा, भय संज्ञा, मैथुन संज्ञा और परिग्रह संज्ञा ।
विकथासूत्र - स्त्री कथा, भक्त कथा, देश कथा और राज कथा, इन चार विकथाओं के द्वारा जो भी अतिचार लगा हो, उसका प्रतिक्रमण करता हूँ।
___ ध्यानसूत्र - आर्तध्यान और रौद्रध्यान के करने से तथा धर्मध्यान एवं शुक्लध्यान के न करने से जो भी अतिचार लगा हो, उसका प्रतिक्रमण करता हूँ।
__पडिक्कमामि पंचहि किरियाहिं – काइयाए, अहिगरणियाए, पाउसियाए, पारितावणियाए, पाणाइवायकिरियाए। ___ पडिक्कमामि पंचहि कामगुणेहिं – सद्देणं, रूवेणं, गंधेणं, रसेणं, फासेणं।
पडिक्कमामि पंचहिं महव्वएहिं - सव्वाओ पाणाइवायाओ वेरमणं, सव्वाओ मुसावायाओ वेरमणं, सव्वाओ अदिन्नादाणाओ वेरमणं, सव्वाओ मेहुणाओ वेरमणं, सव्वाओ परिग्गहाओ वेरमणं।
पडिक्कमामि पंचहिं समिईहिं – इरियासमिईए, भासासमिईए, एसणासमिईए, आयाणभंडमत्तनिक्खेवणासमिईए, उच्चार-पासवण-खेल-जल्ल-सिंघाण-परिट्ठावणियासमिईए।
भावार्थ - क्रियासूत्र - कायिकी, आधिकरणिकी, प्राद्वेषिकी, पारितापनिकी और प्राणातिपातिकी, इन पाँच क्रियाओं के करने से जो भी अतिचार लगा हो उनका प्रतिक्रमण करता हूँ।
कामगुणसूत्र – शब्द, रूप, गंध, रस और स्पर्श इन पाँचों कामगुणों के द्वारा जो भी अतिचार लगा हो उसका प्रतिक्रमण करता हूँ।
___ महाव्रतसूत्र – सर्वप्राणातिपातविरमण – अहिंसा, सर्वमृषावादविरमण – सत्य, सर्वअदत्तादानविरमण अस्तेय, सर्वमैथुनविरमण – ब्रह्मचर्य, सर्वपरिग्रहविरमण – अपरिग्रह, इन पाँचों महाव्रतों में कोई भी अतिचार दोष लगा हो, उसका प्रतिक्रमण करता हूँ।
समितिसूत्र – ईर्यासमिति, भाषासमिति, एषणासमिति, आदान-भाण्डमान-निक्षेपणा-समिति, उच्चारप्रश्रवण-श्लेष्म-जल्ल-सिंघाण-परिष्ठापनिकासमिति, इन पांचों समितियों का सम्यक् पालन न करने से जो