________________
६०]
[ आवश्यकसूत्र
प्रतिमा जघन्य एक रात्रि की और उत्कृष्ट दस मास की होती है।
११. श्रमणभूतप्रतिमा - इस प्रतिमा का धारक श्रावक श्रमण तो नहीं किन्तु श्रमण सदृश होता है। साधु के समान वेश धारण करके और साधु के योग्य ही भाण्डोपकरण रख कर विचरता है । शक्ति हो तो केशलुञ्चन करता है, अन्यथा उस्तरे से शिरोमुण्डन कराता है । इस का काल जघन्य एक अहोरात्र अर्थात् एक दिन-रात और उत्कृष्ट ग्यारह मास होता है।
उपासक का प्रचलित अर्थ श्रावक है और प्रतिमा का अर्थ - प्रतिज्ञा-अभिग्रह है। उपासक की प्रतिमा उपासकप्रतिमा कहलाती है।
यहाँ यह ज्ञातव्य है कि श्रावक की प्रतिमाओं के काल-मान में कुछ मतभेद है। कुछ आचार्य इनका काल एक, दो, तीन यावत् ग्यारह मास का मानते हैं । जघन्य एक, दो, तीन दिवस आदि नहीं मानते। बारह भिक्षुप्रतिमा -
बारह भिक्षुप्रतिमाओं का यथाशक्ति आचरण न करना, उन पर श्रद्धा न करना तथा उनकी अन्यथा प्ररूपणा करना अतिचार है।
१. प्रथम प्रतिमाधारी भिक्षु को एक दत्ति अन्न की और एक दत्ति पानी की लेना कल्पता है । साधु के पात्र में दाता द्वारा दिये जाने वाले अन्न और जल की धारा जब तक अखण्ड बनी रहे तब तक वह एक दत्ति है। धारा खण्डित होने पर दत्ति की समाप्ति हो जाती है । जहाँ एक व्यक्ति के लिये भोजन बना हो वहीं से लेना चाहिये, किन्तु जहां दो, तीन आदि से अधिक व्यक्तियों के लिये भोजन बना हो वहां से नहीं लेना चाहिये। यह पहली प्रतिमा एक मास की हैं।
२. से ७. दूसरी से सातवीं प्रतिमा तक का समय एक-एक मास का है। इनमें क्रमशः एक-एक दत्ति बढ़ती जाती है। दो दत्ति दूसरी प्रतिमा में आहार की, दो दत्ति पानी की लेना। इसी प्रकार तीसरी, चौथी यावत् सातवीं प्रतिमा में क्रमशः तीन, चार, पांच, छह और सात दत्ति अन्न की और उतनी ही पानी की ग्रहण की जाती हैं।
८. आठवीं प्रतिमा सप्त अहोरात्र की होती है । इसमें चौविहार एकान्तर उपवास करना होता है । गाँव के बाहर उत्तानासन (चित्त सोना), पासिन (एक करवट लेना) तथा निषद्यासन (पैरों को बराबर करके बैठना) से ध्यान लगाना चाहिये। उपसर्ग आये तो शान्तचित्त से सहन करना चाहिये।
९. यह प्रतिमा भी सात अहोरात्र की है। इसमें चौविहार षष्ठभक्त तप (बेले-बेले पारणा) किया जाता है। गांव के बाहर एकान्त स्थान में दण्डासन, लगंडासन अथवा उत्कटुकासन से ध्यान किया जाता है।
१०. यह भी सप्त अहोरात्र की होती है । इसमें चौविहार तेले-तेले पारणा किया जाता है। गांव के