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[ आवश्यकसूत्र
विवेचन - अभक्तार्थ - भक्त का अर्थ भोजन है। 'अर्थ' का अर्थ 'प्रयोजन' है। 'अ' का अर्थ 'नहीं' है। तीनों मिलाकर अर्थ होता है – भक्त का प्रयोजन नहीं है जिस व्रत में वह, अर्थात् उपवास। 'न विद्यते भक्ताओं यस्मिन् प्रत्याख्याने सोऽभक्तार्थः स उपवासः।' - श्राद्धप्रतिक्रमणवृत्ति, देवेन्द्रकृत
__चउविहाहार और तिविहाहार के रूप में उपवास दो प्रकार का होता है । सूर्योदय से लेकर दूसरे दिन सूर्योदय तक चारों प्रकार के आहारों का त्याग करना 'चउव्विहाहार अभत्तट्ठ' कहलाता है।
तिविहाहार अर्थात् त्रिविधाहार उपवास में पानी लिया जाता है । अत: जल संबंधी छह आगार मूल पाठ में 'सव्वसमाहिवत्तियागारेणं' के आगे इस प्रकार बढ़ा कर बोलना चाहिये -
'पाणस्स लेवाडेण वा, अलेवाडेण वा, अच्छेण वा, बहलेण वा , ससित्थेण वा, असित्थेण वा वोसिरामि।'
उक्त छह आगारों का उल्लेख जिनदासमहत्तर, हरिभद्र और सिद्धसेन आदि प्रायः सभी प्राचीन आचार्यों ने किया है। केवल उपवास में ही नहीं अन्य प्रत्याख्यानों में ही जहाँ त्रिविधाहार करना हो, सर्वत्र उपर्युक्त पाठ बोलने का विधान है । यद्यपि आचार्य जिनदास आदि ने इसका उल्लेख अभक्तार्थ के प्रसंग पर ही किया है।
उक्त जल संबंधी आगारों का भावार्थ इस प्रकार है -
१. लेपकृत - दाल आदि का मांड तथा इमली, खजूर, द्राक्षा आदि का पानी। वह सब पानी जो पात्र में उपलेपकारक हो, लेपकृत कहलाता है । त्रिविधाहार में इस प्रकार का पानी ग्रहण किया जा सकता है।
२. अलेपकृत - छाछ आदि का निथरा हुआ और कांजी आदि का पानी अलेपकृत कहलाता है। अलेपकृत पानी से वह धोवन लेना चाहिये, जिसका पात्र में लेप न लगता हो।
३. अच्छ - अच्छ का अर्थ स्वच्छ है । गरम किया हुआ पानी ही अच्छ शब्द से ग्राह्य है । हाँ, प्रवचनसारोद्धार की वृत्ति के रचयिता आचार्य सिद्धसेन उष्णोदकादि का कथन करते हैं। 'अपिच्छलात् उष्णोदकादेः।' परन्तु आचार्य श्री ने स्पष्टीकरण नहीं किया कि 'आदि' शब्द से उष्ण जल के अतिरिक्त और कौनसा जल ग्राह्य है? सम्भव है फल आदि का स्वच्छ धोवन ग्राह्य हो । एक गुजराती अर्थकार ने ऐसा लिखा भी है।
४. बहल - तिल, चांवल और जौ आदि का चिकना मांड बहल कहलाता है । बहल के स्थान पर कुछ आचार्य बहुलेप शब्द का भी प्रयोग करते हैं।
५. ससिक्थ - 'आटा आदि से लिप्त हाथ तथा पात्र आदि का वह धोवन जिसमें सिक्थ अर्थात् आटे आदि के कण भी हों। इस प्रकार का जल त्रिविधाहार उपवास में लेने से व्रत भंग नहीं होता।