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चतुर्थ अध्ययन : प्रतिक्रमण ]
[६९ भावनाओं पर अवश्य ही लक्ष्य देना चाहिये। अहिंसा-महाव्रत की पांच भावनाएँ -
१. ईर्यासमिति – उपयोगपूर्वकगमनागमन करना। २. आलोकितपानभोजन – देख-भालकर प्रकाशयुक्त स्थान में आहार करना। ३. आदाननिक्षेपसमिति - विवेकपूर्वक पात्रादि उठाना तथा रखना। ४. मनोगुप्ति – मन का संयम।
५. वचनगुप्ति – वाणी का संयम। सत्य-महाव्रत की पांच भावनाएँ -
१. विचार कर बोलना, २, क्रोध का त्याग, ३. लोभ का त्याग, ४. भय का त्याग, ५. हँसी-मजाक का त्याग। अस्तेय महाव्रत की पांच भावनाएँ -
१. अठारह प्रकार के शुद्ध स्थान की याचना करके सेवन करना। २. प्रतिदिन तृण-काष्ठादि का अवग्रह लेना। ३. पीठ-फलक आदि के लिये भी वृक्षादि को नहीं काटना । ४. साधारण पिण्ड का अधिक सेवन नहीं करना।
५. साधु की वैयावृत्य करना। ब्रह्मचर्य-महाव्रत की पांच भावनाएँ -
१. स्त्री-पशु-नपुंसक के सान्निध्य से रहित स्थान में रहना। २. स्त्री-कथा का वर्जन करना। ३. स्त्रियों के अंगोपांगों का अवलोकन नहीं करना। ४. पूर्वकृत कामभोग का स्मरण नहीं करमा।
५. प्रतिदिन सरस भोजन न करना। अपरिग्रह-महावत की पांच भावनाएँ -
१.-५. पांच इन्द्रियों के विषय - शब्द, रूप, गन्ध, रस और स्पर्श के इन्द्रिय-गोचर होने पर मनोज्ञ पर रागभाव तथा अमनोज्ञ पर द्वेषभाव न लाकर उदासीनभाव रखना।