Book Title: Agam 28 Mool 01 Avashyak Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Mahasati Suprabha
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 196
________________ षष्ठाध्ययन : प्रत्याख्यान ] [१२५ अनाभोग और सहसाकार दोनों ही आगारों के संबंध में यह बात है कि जब तक पता न चले, तब तक तो व्रत भंग नहीं होता। परन्तु पता चल जाने के बाद भी मुख में ग्रास ले लिया हो और उसे थूके नहीं एवं आगे खाना बन्द नहीं करे तो व्रत भंग हो जाता है। अतः साधक का कर्त्तव्य है कि जैसे ही पता चले, भोजन बन्द कर दे और जो कुछ मुख में हो, वह सब यतना के साथ थूक दे। ऐसा न करे तो व्रत भंग हो जाता २.पौरुषीसूत्र उग्गए सूरे पोरिसिं पच्चक्खामि; चउव्विहं पि आहारं – असणं, पाणं, खाइमं, साइमं । अन्नत्थऽणाभोगेणं, सहसागारेणं, पच्छन्नकालेणं, दिसामोहेणं, साहुवयणेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं, वोसिरामि। ___ भावार्थ – पौरुषी का प्रत्याख्यान करता हूँ । सूर्योदय से लेकर अशन, पान, खदिम और स्वादिम चारों ही प्रकार के आहार का एक प्रहर दिन चढ़े तक त्याग करता हूँ। इस व्रत के आगार छह हैं -(१) अनाभोग, (२) सहसाकार, (३) प्रच्छन्नकाल, (४) दिशामोह, (५) साधुवचन, (६) सर्वसमाधिप्रत्ययाकार । इन छह आकारों के सिवाय पूर्णतया चारों प्रकार के आहार का त्याग करता हूँ। विवेचन – सूर्योदय से लेकर एक प्रहर दिन चढ़े तक चारों प्रकार के आहार का त्याग करना, पौरुषी प्रत्याख्यान है। __पौरुषी का शाब्दिक अर्थ है – 'पुरुष-प्रमाण छाया।' एक प्रहर दिन चढ़ने पर मनुष्य की छाया घटते-घटते अपने शरीर प्रमाण लम्बी रह जाती है । इसी भाव को लेकर 'पौरुषी' शब्द प्रहरपरिमित काल विशेष के अर्थ में लक्षणा वृत्ति के द्वारा रुढ़ हो गया है। पौरुषी के छह आगार इस प्रकार हैं - (१) अनाभोग - प्रत्याख्यान की विस्मृति-उपयोगशून्यता हो जाने से भोजन कर लेना। (२) सहसाकार - अकस्मात् जल आदि का मुख में चले जाना। (३) प्रच्छन्नकाल - बादल अथवा आँधी आदि के कारण सूर्य के ढक जाने से पौरुषी पूर्ण हो जाने की भ्रान्ति से आहार कर लेना। (४) दिशामोह – पूर्व को पश्चिम समझकर पौरुषी न आने पर भी सूर्य के ऊंचा चढ़ आने की भ्रान्ति से अशनादि सेवन कर लेना। (५) साधुवचन – 'पौरुषी आ गई' इस प्रकार किसी आप्त पुरुष के कहने पर बिना पौरुषी आए

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