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[ आवश्यकसूत्र
(१०) अद्धाप्रत्याख्यान - मुहूर्त, पौरुषी आदि काल की अवधि के साथ किया जाने वाला प्रत्याख्यान। १. नमस्कारसहितसूत्र
__उग्गए सूरे नमोक्कारसहियं पच्चक्खामि चउव्विहं पि आहारं – असणं, पाणं, खाइम, साइमं । अन्नत्थऽणाभोगेणं, सहसागारेणं, वोसिरामि।
___भावार्थ – सूर्य उदय होने पर नमस्कारसहित – दो घड़ी दिन चढे तक का (नोकारसी का) प्रत्याख्यान ग्रहण करता हूँ और अशन, पान, खादिम तथा स्वादिम - इन चारों ही प्रकार के आहार का त्याग करता हूँ।
प्रस्तुत प्रत्याख्यान में दो आगार अर्थात् अपवाद हैं – अनाभोग – अत्यन्त विस्मृति और सहसाकारशीघ्रता (अचानक)। इन दो आगारों के सिवा चारों आहार वोसिराता हूँ – त्याग करता हूँ।
विवेचन – नमस्कारसहित अर्थात् सूर्योदय से लेकर दो घड़ी दिन चढे तक यानि मुहूर्त भर के लिये नमस्कार पढ़े बिना आहार ग्रहण नहीं करना। साधारण बोलचाल की भाषा में इसे 'नवकारसी' (नोकारसी)कहते हैं। चार प्रकार का आहार
(१) अशन - इसमें रोटी, चावल आदि सभी प्रकार का भोजन आ जाता है।
(२) पान – दूध, पानी आदि सभी पीने योग्य चीजें पान में समाविष्ट हैं। किन्तु परम्परा के अनुसार यहां पान से केवल जल ही ग्रहण किया जाता है।
(३) खादिम – मेवा, फल आदि। कुछ आचार्य मिष्ठान्न को अशन में ग्रहण करते हैं और कुछ खादिम में।
(४) स्वादिम - लौंग, इलायची, सुपारी आदि मुखवास को स्वादिम माना है। इस आहार में उदरपूर्ति की दृष्टि न होकर मुख्यतया मुख के स्वाद की दृष्टि होती है।
संस्कृत भाषा का 'आकार' ही प्राकृत भाषा में 'आगार' कहलाता है। आकार का अर्थ – अपवाद 'माना जाता है । अपवाद का अर्थ है - यदि किसी विशेष स्थिति में त्याग की हुई वस्तु सेवन कर ली जाये या करना पड़ जाय तो प्रत्याख्यान भंग नहीं होता है । अतएव व्रत अंगीकार करते समय आवश्यक आगार रखना चाहिये। ऐसा न करने पर व्रत भंग की संभावना रहती है -
_ 'आकियते विधीयते प्रत्याख्यानभंगपरिहारार्थमित्याकारः' - 'प्रत्याख्यानं च अपवादरूपाकारसहितं कर्त्तव्यम्, अन्यथा तु भंगः स्यात्।' - आचार्य हेमचन्द्र (योगशास्त्र)