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षष्ठाध्ययन : प्रत्याख्यान ]
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साधयितुमशक्यं ग्लानचैत्यसंघादि-प्रयोजनं, तदेव आकारः – प्रत्याख्यानापवादो महत्तराकारः।'
___ अर्थात् – प्रत्याख्यान के पालन से जितनी निर्जरा होती है, उससे भी महान् निर्जरा का कारण एवं किसी अन्य पुरुष से जो न हो सकता हो, ऐसा कोई रुग्णमुनि की सेवा या संघ संबंधी कोई प्रयोजन उपस्थित हो जाना महत्तराकार है। ऐसी स्थिति में यदि समय से पूर्व आहार ग्रहण कर लिया जाये तो व्रत भंग नहीं होता। इस अर्थ के अनुसार आचार्यादि के आदेश के बिना भी व्रतधारी अपने विवेक से ही इस आगार का सेवन कर सकता है।
किन्तु आचार्य नमि प्रतिक्रमण-सूत्र वृत्ति में लिखते हैं -
"अतिशयेन महान् महत्तर आचार्यादिस्तस्य वचनेन मर्यादया करणं महत्तराकारो, यथा केनादि साधुना भक्तं प्रत्याख्यातं , ततश्च कुल-गण-संघादि-प्रयोजनमनन्यसाध्यमुत्पन्नं, तत्र चासौ महत्तरेराचार्याद्यैर्नियुक्तः, ततश्च यदि शक्नोति तथैव कर्तुं तदा करोति; अथ न, तदा महत्तरकादेशेन भुञानस्य न भंग इति।"
___ तात्पर्य यह है - जो बहुत महान् हों, वे आचार्यादि महत्तर कहलाते हैं। उनके आदेश से मर्यादापूर्वक जो किया जाए वह महत्तरागार कहलाता है। यथा – किसी साधु ने आहार का त्याग किया। उसके पश्चात् कुल, गण या संघ आदि का कोई कार्य आ पड़ा और वह कार्य भी ऐसा कि दूसरे के द्वारा हो नहीं सकता। ऐसी स्थिति में यदि प्रत्याख्यान का पालन करता हुआ उस कार्य को कर सके तो करे । यदि प्रत्याख्यान के साथ वह कार्य सम्पन्न न कर सके तो आहार कर ले। इस अवस्था में प्रत्याख्यान भंग नहीं होता । इस अर्थ के अनुसार आचार्यादि महान् पुरुष 'महत्तर' हैं । उनके आदेश से ही यह आगार सेवन किया जा सकता है।
पूर्वार्ध-प्रत्याख्यान के समान ही अपार्ध-प्रत्याख्यान भी होता है । अपार्ध-प्रत्याख्यान का अर्थ है - तीन प्रहर दिन चढ़े तक आहार ग्रहण न करना। अपार्ध-प्रत्याख्यान ग्रहण करते समय 'पुरिमड्ढं' के स्थान में 'अवड्ढं' पाठ बोलना चाहिये। शेष पाठ दोनों प्रत्याख्यानों का समान है। ४. एकासनसूत्र
एगासणं पच्चक्खमि तिविहं पि आहारं असणं, खाइमं, साइमं ।
अन्नत्थऽणाभोगेणं, सहसागारेणं, सागारियागारेणं, आउंटण-पसारणेणं, गुरु-अब्भुट्ठाणेणं, पारिट्ठावणियागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरामि।
भावार्थ - मैं एकाशन तप स्वीकार करता हूँ। फलतः अशन, खादिम और स्वादिम - इन तीनों प्रकार के आहारों का प्रत्याख्यान करता हूँ। इस व्रत के आगार आठ हैं , यथा -