Book Title: Agam 28 Mool 01 Avashyak Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Mahasati Suprabha
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 199
________________ १२८] [ आवश्यकसूत्र (१) अनाभोग, (२) सहसागार, (३) सागारिकाकार, (४) आकुञ्चन-प्रसारण, (५) गुर्वभ्युत्थान, (६) पारिष्ठापनिकाकार, (७) महत्तराकार, (८) सर्वसमाधिप्रत्ययाकार। उक्त आठ आगारों के सिवा आहार का त्याग करता हूँ। विवेचन - दिन में एक बार भोजन करना, एकाशन तप कहलाता है। एकाशन का अर्थ है - एक+ अशन,' अर्थात् एक बार भोजन करना। प्रत्याख्यान, गृहस्थ तथा साधु दोनों के लिये समान ही है। फिर भी गृहस्थ को ध्यान रहे कि वह एकाशन में अचित्त अर्थात् प्रासुक आहार-पानी ही ग्रहण करे। साधु को तो यावज्जीवन के लिये अप्रासुक आहार का त्याग ही है । श्रावक को मूल पाठ बोलते समय पारिट्ठावणियागरेणं' पाठ नहीं बोलना चाहिये। एकाशन और द्विकाशन में भोजन करते समय तो यथेच्छ चारों आहार लिये जा सकते हैं, परन्तु भोजन के बाद शेषकाल में भोजन का त्याग होता है। यदि एकाशन तिविहार करना हो तो शेषकाल में पानी पिया जा सकता है। यदि चउविहार करना हो तो पानी भी नहीं पिया जा सकता। यदि दुविहार करना हो तो भोजन के बाद पानी तथा स्वादिम - मुखवास लिया जा सकता है । आज कल तिविहार एकाशन की प्रथा ही प्रचलित है, अतएव मूल पाठ में 'तिविहं' पाठ दिया है । यदि चउविहार करना हो तो 'चउविहं पि आहारं असणं, पाणं, खाइमं, साइमं' ऐसा पाठ बोलना चाहिये। दुविहार-एकाशन की परम्परा प्राचीन काल में थी। आज के युग में इसका प्रचलन बहुत कम है, यद्यपि सर्वथा का अभाव नहीं है। एकाशन में आठ आगार होते हैं । चार पहले आ चुके हैं, शेष चार इस प्रकार हैं - १. सागारिकाकार - आगम की भाषा में सागारिक गृहस्थ को कहते हैं । गृहस्थ के आ जाने पर उसके सम्मुख भोजन करना निषिद्ध है। अतः सागारिक के आने पर साधु को भोजन करना छोड़ कर यदि बीच में ही उठ कर, एकान्त में जा कर पुनः दूसरी बार भोजन करना पड़े तो व्रत भंग नहीं होता है। १. 'एगासण' प्राकृत-शब्द है, जिसके संस्कृत रूपान्तर दो होते हैं - 'एकाशन' और 'एकासन'। (१) 'एकाशन' का अर्थ है - एक बार भोजन करना। (२) 'एकासन' का अर्थ है - एक आसन से भोजन करना। 'एगासण' में दोनों ही अर्थ ग्राह्य हैं। एकंसकृत् अशनं-भोजन एकंवा आसनं-पुताचलनतो यत्र प्रत्याख्याने तदेकाशनमेकासनं वा, प्राकृते द्वयोरपि एगासणमिति रूपम्।' - प्रवचनसारोद्धारवृत्ति आचार्य हरिभद्र एकासन की व्याख्या करते हैं कि एक बार बैठ कर फिर न उठते हुए भोजन करना। 'एकाशनं नाम सदुपविष्ट पताचालनेन भोजनम्।' - आवश्यकवृत्ति

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