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[ आवश्यक सूत्र
चार मूलसूत्र उत्तरज्झयणं (उत्तराध्ययन), दसवेयालियसुत्तं ( दशवैकालिकसूत्र), णंदीसुतं (नन्दीसूत्र), अणुओगद्दार (अनुयोगद्वार ) ।
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चार छेदसूत्र - दसासुयक्खंधो ( दशा श्रुतस्कंध ), विहदक्कप्पो ( वृहत्कल्प), ववहारसुत्तं ( व्यवहारसूत्र ), णिसीहसुत्तं (निशीथसूत्र) और बत्तीसवां आवस्सगं (आवश्यक) तथा सात नय, चार निपेक्ष, स्वमत और परमत के जानकार, जिन नहीं पर जिन सरीखे, केवली नहीं पर केवली सरीखे ।
ऐसे श्री उपाध्याय जी महाराज मिथ्यात्व रूप अंधकार के मेटनहार, समकित रूप उद्योत के करनहार, धर्म से डिगते हुए प्राणी को स्थिर करें, सारए, वारए, धारए, इत्यादि अनेक गुण करके सहित हैं ऐसे श्री उपाध्याय जी महाराज आपकी दिवस एवं रात्रि सम्बन्धी अविनय आशातना की हो तो बारम्बार हे उपाध्याय जी महाराज ! मेरा अपराध क्षमा करिये, हाथ जोड़, मान मोड़, शीश नमा कर तिक्खुत्तो के पाठ से एक हजार आठ बार नमस्कार करता हूँ । यावत् भव-भव सदा काल शरण हो ।
पांचवें पद ‘णमो लोए सव्वसाहूणं' अढ़ाई द्वीप पन्द्रह क्षेत्र रूप लोक में सर्व साधु जी महाराज जघन्य दो हजार करोड़, उत्कृष्ट नव हजार करोड़ जयवन्त विचरें, पांच महाव्रत, पांच इन्द्रिय जीतें, चर कषाय टालें, भावसच्चे, करणसच्चे, जोगसच्चे, क्षमावन्ता वैराग्यवन्ता, मनसमाधारणिया, वयसमाधारणिया, कायसमा धारणिया, नाणसम्पन्ना, दंसणसम्पन्ना, चारित्रसम्पन्ना, वेदनीयसमा अहि यासनीया, मरणान्तियसमाअहियासनीया, ऐसे सत्ताईस गुण करके सहित हैं। पांच आचार वाले, छ: काय की रक्षा करें, आठ मद छोड़ें, दश प्रकार यतिधर्म धारें, बारह भेदे तप करें, सत्रह भेदे संयम पालें, बावीस परिषह जीतें, बयालीस दोष टाल कर आहार पानी लेवें, सैंतालीस दोष टाल कर भोगवें, बावन अनाचार टालें, तेड़िया आवे नहीं, नेतिया जीमे नहीं, सचित्त के त्यागी, अचित्त के भोगी इत्यादि मोह ममता रहित हैं ।
ऐसे मुनिराज महाराज आपकी दिवस एवं रात्रि सम्बन्धी अविनय आशातना की हो तो बारम्बार हे मुनिराज ! मेरा अपराध क्षमा करिये। हाथ जोड़, मान मोड़, शीश नमा कर तिक्खुत्तो के पाठ से एक हजार आठ बार नमस्कार करता हूँ । यावत् भव-भव सदा काल शरण हो ।
दर्शनसम्यक्त्व का पाठ
अरिहंतो मह देवो, जावज्जीवं सुसाहुणो गुरुणो । जिणपण्णत्तं तत्तं, इय सम्मत्तं मए वहियं ॥ परमत्थसंथवो वा सुदिट्ठपरमत्थसेवणा वावि । वावण्ण- कुदंसण- वज्जणा ज्ञ सम्मत्तसद्दहणा ॥
इअ सम्मत्तस्स पंच अइयारा पेयाला जाणियव्वा न समायरियव्वा, तं जहा ते आलोउं संका, कंखा, वितिगिच्छा, पर- पासंडपसंसा, परपासंडसंथवो ।