Book Title: Agam 28 Mool 01 Avashyak Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Mahasati Suprabha
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 177
________________ १०६] [ आवश्यकसूत्र कुल कोडी खमाने का पाठ - पृथ्वीकाय के बारह लाख कुलकोडी, अप्काय के सात लाख कुलकोडी, तेजस्काय के तीन लाख कुलकोडी, वायुकाय के सात लाख कुलकोडी, वनस्पतिकाय के अट्ठाईस लाख कुलकोडी, द्वीन्द्रिय के सात लाख कुलकोडी, त्रीन्द्रिय के आठ लाख कुलकोडी, चतुरिन्द्रिय के नव लाख कुलकोडी, जलचर के साढ़े बारह लाख कुलकोडी, स्थलचर के दस लाख कुलकोडी, खेचर के बारह लाख कुलकोडी, उरपरिसर्प के दस लाख कुलकोडी, भुजपरिसर्प के नव लाख कुलकोडी, नरक के पच्चीस लाख कुलकोडी, देवता के छब्बीस लाख कुलकोडी, मनुष्य के बारह लाख कुलकोडी, यों एक करोड़ साढ़े सत्तानवै लाख कुलकोडी की विराधना की हो तो देवसी संबंधी तस्स मिच्छा मि दुक्कडं। प्रणिपात-सूत्र - नमोत्थुणं अरिहंताणं, भगवंताणं॥१॥ आइगराणं, तित्थयराणं, सयंसंबुद्धाणं ॥२॥ पुरिसुत्तमाणं, पुरिस-सोहाणं, पुरिसवरपुंडरीयाणं, पुरिसवरगंधहत्थीणं ॥३॥ लोगुत्तमाणं, लोगनाहाणं, लोगहियाणं, लोगपईवाणं, लोगपज्जोयगराणं॥४॥ अभयदयाणं, चक्खुदयाणं, मग्गदयाणं, सरणदयाणं, जीवदयाणं, बोहिदयाणं॥५॥ धम्मदयाणं, धम्मदेसयाणं, धम्मनायगाणं, धम्मसारहीणं, धम्मवर-चाउरंत-चक्कवट्टीणं॥६॥ दीवो ताणं-सरण-गई-पइट्ठाणं, अप्पडिहय-वरनाण-दसणधराणं, वियट्टछउमाणं॥७॥ जिणाणं, जावयाणं, तिण्णाणं, तारयाणं, बुद्धाणं बोहयाणं, मुत्ताणं, मोयगाणं॥८॥ सव्वन्नूणं, सव्वदरिसीणं, सिव-मयलमरुय-मणंत-मक्खय-मव्वाबाह-मपुणरावित्ति-सिद्धिगइनामधेयं ठाणं संपत्ताणं, नमो जिणाणं, जियभयाणं॥ भावार्थ - श्री अरिहन्त भगवन्तों को नमस्कार हो। (अरिहंत भगवान् कैसे हैं?) धर्म की आदि

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